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मोक्ष

-लघु कथा
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)

दादी हमेशा तारा की माँ को ताना मारती रहती ..पता नहीं इसकी गोद में बेटा कब खेलेगा और मैं भी अपने कुल दीपक को देख सकूँगी । दो-दो बेटियाँ हो गईं , बहू अब मुझे पोते का मुँह दिखा दे तो मेरा जीवन सफल हो जाए । बेटे के हाथ से अग्नि मिलती है तो सीधे परम धाम की प्राप्ति होती है , मोक्ष मिलता है मोक्ष । बेटियाँ तो पराया धन हैं ,अपने घर चली जायेगी बेटा ही तारेगा सारे कुल को । किसी वेदमंत्र की तरह उनकी बातें शुरू होतीं तो रुकने का नाम न लेतीं ।
       तारा को दादी पर बहुत गुस्सा आता, माँ भी किस मिट्टी की बनीं थीं ,चुपचाप उनकी बातें सुनती रहतीं । कोई जवाब भी न देतीं ,पता नहीं वह उन्हें कुछ कहतीं क्यों नहीं । तारा कई बार उन्हें जीभ निकाल कर चिढ़ा भी दिया करती । उसकी छोटी बहन सलोनी तो उनकी शक्ल से नफरत करती थी । जब से पैदा हुए हैं ,यह तो हमें बस कोसा ही करतीं हैं । कभी प्यार भी नहीं करती । बेटा, बेटा ..मम्मी आज दादी की सब्जी में खूब सारी मिर्ची डाल दो वह कहती तो मम्मी पहले  खूब हँसती फिर हमें बहुत प्यार से समझातीं--बेटा वह पहले जमाने की हैं ,जैसा उन्होंने सुना है वही बोलती हैं । मेरी तुम्हारी तरह पढ़ी-लिखी होतीं तो ऐसी बातें थोड़ी ही कहतीं । आजकल बेटा-बेटी दोनों को पढ़ने , आगे बढ़ने के समान अवसर मिलते हैं , यह वह नहीं जानतीं । तुम लोग बड़ी होकर उन्हें समझाना , तुम जब डॉक्टर बनकर उनका इलाज करोगी न तो वह जान जाएँगी कि वह कितना गलत सोचतीं थीं बेटियों के बारे में । माँ की यह समझाईश कुछ दिन ही उनके मस्तिष्क में रहती और  दादी को माफ कर देते पर दो-चार दिनों के बाद फिर दादी पोती का खामोश युद्ध आरंभ हो जाता । उनके कपड़े छुपा देना , खाने-पीने की चीजों को खराब कर देना , पूजा करते समय उनका चश्मा गायब कर देना ये उनके विरोध जताने के तरीके  थे । बरसों तक दादी मम्मी-पापा से बेटे के लिए मिन्नतें करती रहीं फिर पता नहीं इसी में ईश्वर की मर्जी सोचकर  चुप्पी साध ली । मम्मी-पापा के लिए  बेटियाँ सीप के मोती की तरह अनमोल थीं , उन्होंने उनके लिए सुख-साधन जुटाने में कोई कमी नहीं रखी और तारा ने डॉक्टर , सलोनी ने इंजीनियर बनकर उनका सपना पूरा किया । दादी के देखते -देखते ही जमाना बदला , उन्होंने यह बदलाव देखा कि बेटे वाले उनके होते हुए भी वृद्धाश्रम पहुँचे और जिनकी सिर्फ बेटियाँ थीं उन्होंने अपने माता-पिता की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी ली । भोली-भाली दादी के लिए यह एक अलग तरह की दुनिया थी जिसके बारे में उन्होंने न कहीं पढ़ा न सुना था ।
        कोरोना की दूसरी लहर में हजारों ,लाखों मौतें हुईं । लॉक डाउन रहने के कारण लोग दूर-दूर फँसे रहे । कई पिताओं ने अस्पताल में दम तोड़ दिया ,उनके स्वजन उनके अंतिम दर्शन तक नहीं कर सके । बेटे के हाथों अग्नि-संस्कार की साध लिए  दादी भी परम धाम को चली गईं । पापा को भी कोरोना हुआ था ,वे स्वयं आइसोलेशन में थे । पर हाँ ,जिस पोती को वे जीवन भर कोसती रहीं उसी ने पी.पी.ई.किट पहने उनकी सेवा की और उन्हे मुखाग्नि भी प्रदान की । पता नहीं दादी को मोक्ष  मिला या नहीं पर जाने से पहले उनके मुख पर सन्तुष्टि भरी और शांत -सी मुस्कान की झलक तारा ने अवश्य देखी थी ।

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