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लग जा गले...गीत और अभिनेत्री साधना की   खूबसूरती

  जयंती पर विशेष - आलेख मंजूषा शर्मा

हिन्दी सिनेमा जगत में कुछ ऐसे गाने बन पड़े हैं जिन्हें बार - बार सुनने का मन करता है।  इन गानों को सुनकर ऐसे लगता है जैसे यह हमारी जिंदगी का ही हिस्सा हैं और हमारे सुख-दुख में शामिल होकर हमारी ही कहानी कह रहे हों। एक ऐसा ही गाना है लग जा गले, कि फिर ये हसीं रात हो न हो....बड़ा ही खूबसूरत गीत है जिसे लता मंगेशकर ने अपनी प्यारी सी आवाज से सजाया और संगीतकार मदनमोहन साहब ने अपनी रागिनी से संवारा है। यह गीत फिल्म वो कौन थी, में शामिल किया गया था। पिक्चराइजेशन में साधना और मनोज कुमार नजर आते हैं। आज अभिनेत्री साधना यानी साधना शिवदसानी की जयंती पर इसी गाने की चर्चा। 
 लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो...  गाने को बने  56 साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन जैसे - जैसे समय आगे बढ़ता जा रहा है , यह गाना और भी मीठा होता जा रहा है। यह गाना आज भी बिल्कुल नया और ताजा लगता है। 
लता मंगेशकर की शहद सी मीठी खनकती आवाज, मदन मोहन की सुरों से खेलने की एक अच्छी आदत और राजा मेहंदी अली खान के दिल को छू लेने वाले बोल और अभिनेत्री साधना की खूबसूरती, जाहिर है कि गाने को तो शानदार बनना ही था। हुआ भी यही और आज भी यह गाना जितना भी सुनो छोटा  ही लगता है।  
राज खोसला की सस्पेंस फिल्म वो कौन थी, वर्ष 1964 में बनी थी। फिल्म भी बहुत से पहाड़ी  दृश्यों से भरी पड़ी है। लिहाजा संगीतकार मदन मोहन साहब ने फिल्म की कहानी के मूड को ध्यान में रखा और राग पहाड़ी में ही इस गाने को तैयार किया। अपने जमाने में भी यह गाना सुपर डुपर हिट हुआ। 
 इसका फिल्मांकन भी ज़ोरदार है। ब्लैक एंड व्हाइट में बनी इस फिल्म में साधना बला की खूबसूरत लगी हैं। फिल्म में मनोज कुमार के साथ उनकी जोड़ी को भी लोगों ने पसंद किया। जब यह फिल्म बनी तब गानों के एल.पी. रिकॉर्ड बना करते थे और उस समय कैसेट्स या सीडीज का जमाना नहीं था।   ये गीत सम्पादित स्वरुप में उपलब्ध है फिल्म के एल. पी. रिकॉर्ड पर। फिल्म वाला वर्जन थोड़ा लम्बा है और इसमें संगीत के अंश कुछ ज्यादा हैं। शायद उस वक्त फिल्म के निर्देशक राज खोसला  को लगा होगा कि सुनने में यह गाना कहीं बोझिल न लगे। हालांकि फिल्म में उन्होंने पूरा गाना रखा , उस वक्त शायद उन्हें भरोसा रहा होगा कि साधना की सुंदरता और फिल्मांकन बोरियत पैदा नहीं करेगा। फिल्म रिलीज हुई और फिल्म में यह  गाना सबसे अच्छा साबित हुआ। 
पूरा गाना है-
लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो ...
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो न हो ...
हमको मिली हैं आज ये घडिय़ां नसीब से ...
जी भर के देख लीजिये हमको करीब से...
फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो ....
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो न हो ...
 पास आईये के हम नहीं आयेंगे बार बार ...
बाहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार ज़ार... 
आंखों से फिर ये प्यार की बरसात हो न हो ...
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो न हो ...
 लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो ...
शायद फिर इस जनम में मुलाकात हो न हो ...
गाने के बोल से साफ जाहिर है कि यह काफी रोमांटिक मूड का गाना है। इस गाने के पिक्चराइजेशन में साधना की आंखें प्यार में डूबी नजर आती है जो अपने पति से अपने प्यार का इजहार कर रही है। उनकी आंखेेंं विश्वास और समर्पण जाहिर करती है, लेकिन नायक मनोज कुमार की आंखों में असमंजस झलकता है। वह समझ नहीं पाता कि उसके सामने जो खड़ी है, वह वाकई उसकी पत्नी है या फिर कोई और। गाने का फिल्मांकन नदी के रेतीले तट पर रात में किया गया जिसमें चंद पेड़ नजर आते हैं। पूरा इलाका सूनसान है जो इस रोमांटिक गाने में भी रहस्य का  पुट शामिल कर देता है जैसा कि फिल्म की कहानी है। साधना ने इसमें दोहरी भूमिका निभाई थी। 
मुझे मदनमोहन के अधिकांश गाने पसंद हैं ।  शायद इसलिए कि उनका संगीत दिल को छूता है या शायद संगीत में बोल कुछ इस तरह उभर कर सामने आते हैं कि बोल और संगीत एक दूसरे के लिए बने हुए से लगते हैं ।  अपने गानों में मदन मोहन साहब शास्त्रीय रागों का इस्तेमाल इसतरह से किया करते थे कि कठिन से कठिन मुरकियां भी आसान लगती हैंं हालांकि उसे उसी तरह से परफेक्ट गाना किसी पारंगत गायक के ही बस की बात है। दरअसल मदन मोहन साहब के संगीतबद्ध गीत अत्यन्त परिष्कृत हुआ करते थे। आभिजात्य वर्ग के बीच उनके गीत बड़े शौक से सुने और सराहे जाते थे। वे गज़लों को संगीतबद्ध करने में सिद्ध थे। गज़लों के साथ ही अपने गीतों में रागों का प्रयोग भी निपुणता के साथ करते थे।  उनके अधिकतर राग आधारित गीतों को लता मंगेशकर और मन्ना डे स्वर प्रदान किए हैं।
लग जा गले... गाने में मदन मोहन ने राग पहाड़ी का बखूबी इस्तेमाल किया है।   ऐसी मान्यता है कि राग  पहाड़ी , देश के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रचलित लोकधुन का शास्त्रीय रूपान्तरण है। यह राग जितना शास्त्रीय है, उससे भी ज़्यादा यह जुड़ा हुआ है पहाड़ों के लोक संगीत से। यह पहाड़ों का संगीत है, जिसमें प्रेम, शांति और वेदना के सुर सुनाई देते हैं। राग पहाड़ी बॉलीवुड में संगीतकारों का पसंदीदा राग रहा है। इस पर आधारित कई हिट गाने बने हैं जैसे, कि -तेरे मेरे होठों पर (चांदनी),2)नूरी (शीर्षक), इन हवाओ में इन घटाओ में (गुमराह), हुस्न पहाड़ों का (राम तेरी गंगा मैली), कैसे जीऊंगा मैं (साहिबा), बहारों मेरा जवान भी सवारों (आखरी खत), दीवाना मुझसा नहीं इस अंबर के (तीसरी मंजि़ल), सखी रे मन उलझे तन डोले(लता), पर्वतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है ,  एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा , मेरा जीवन कोरा कागज (कोरा कागज), सावली सलोनी तेरी झील सी आंख, आज ना छोड़ेंगे (कटी पतंग -मिश्रित पहाड़ी)
 लग जा गले , गाने में गीतकार राजा मेहंदी अली ख़ां के शब्दों को लता जी जैसे अपने गायकी का अमृत स्पर्श प्रदान कर रही हैं। ऑर्केस्ट्रा और लताजी की गायकी  मदन मोहन के संगीत में कुछ ऐसी होती है कि वे एक दूसरे का पूरक बन जाते हैं। कोई किसी से कम नहीं।   संगीत और धुन पर गौर करें, तो मदनजी का मूड सुनाई देता है, लताजी को सुनें तो उनकी वहीं प्यारी सी मीठी खनक सुनाई देती है। कोई एक दूसरे को पीछे छोडऩे की कोशिश नहीं करता है। मदन मोहन के संगीत का एक जादू ऐसा है कि आप गाने के बोल भूल जाएं, लेकिन धुन कभी नहीं भूल सकते।  
सस्पेंस फिल्मों की शुरूआत फिल्म निर्माता राज खोसला की वर्ष 1964 में रिलीज हुई फिल्म  वो कौन थी  से मानी जा सकती है। मनोज कुमार, साधना (दोहरी भूमिका), हेलन, प्रेम चोपड़ा के साथ अपने सुरीले संगीत के साथ-साथ क्लाइमैक्स तक दर्शकों को अचंभित करने वाली इस फिल्म ने अपने समय में बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कामयाबी प्राप्त की थी। 
 खास बात यह है कि फिल्म निर्माता करण जौहर ने अपनी लघु फिल्म बॉम्बे टॉकीज में इस गाने का इस्तेमाल किया है। यही नहीं इस गाने को  कई विज्ञापनों में भी इस्तेमाल किया गया है। आज अभिनेत्री साधना जी के जन्मदिन पर आप फिर से ये गाना सुनकर देखिए, निस्संदेह यह और भी मीठा लगेगा। आंखें बंद करेंगे, तो साधना की मोहनी मूरत सामने तस्वीर बनकर जरूर उभरेगी और आप माहौल के साथ गाने में डूबते चले जाएंगे।  
 
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