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 कई रोगों में फायदेमंद होता है पाषाण भेद
  कोलियस फोर्सकोली जिसे पाषाणभेद अथवा पत्थरचूर भी कहा जाता है, उन कुछ औषधीय पौधों में से है, वैज्ञानिक आधारों पर जिनकी औषधीय उपयोगिता हाल ही में स्थापित हुई है। इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता है। पाषाणभेद का शाब्दिक अर्थ है कि पत्थरों को तोड़ देना और यही इस औषधि का प्रमुख गुण है। पाषाणभेद का मुख्य उपयोग पथरी के इलाज में किया जाता है। इस जड़ी-बूटी में ऐसे औषधीय गुण हैं जो पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्र मार्ग से बाहर निकालने में मदद करते हैं। 
 इसके फूल छोटे-छोटे, सफ़ेद और गुलाबी रंग के होते हैं। पाषाणभेद के बीजों का आकर पिरामिड जैसा होता है। इसकी जड़ों और पत्तियों को औषधि के रूप में इस्तेम्माल किया जाता है। बाजार में इसके भूरे रंग के कड़े, खुरदुरे एवं झुर्रीदार छालयुक्त सूखे टुकड़े मिलते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से नवम्बर तक होता है। 
 पाषाणभेद के औषधीय गुण  
-पाषाणभेद मधुर, कटु, तिक्त, कषाय, शीत, लघु, स्निग्ध, तीक्ष्ण तथा त्रिदोषहर होता है।
-यह सारक, अश्मरी-भेदक, वस्तिशोधक तथा मूत्रविरेचक होता है।
-यह अर्श, गुल्म, मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, हृद्रोग, योनिरोग, प्रमेह, प्लीहारोग, शूल, व्रण, दाह, शिश्नशूल तथा अतिसार-नाशक होता है।
-इसका पौधा पूयरोधी, तिक्त तथा कषाय होता है।
-यह स्नायुरोग, अधरांगवात, गृध्रसी, व्रण, ग्रन्थिशोथ, विषाक्तता, कण्डु तथा कुष्ठ में लाभप्रद होता है।
 पाषाणभेद के फायदे और उपयोग 
पाषाणभेद को मुख्य रूप से पथरी के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह कई अन्य बीमारियों के इलाज में भी सहायक है।  
 आंखों के रोग 
आंखों से जुड़े रोगों के इलाज में भी पाषाणभेद बहुत उपयोगी है। इसके लिए पाषाणभेद के पत्तों को पीसकर आंखों के बाहर चारों तरफ लगाएं। इसे लगाने से अभिष्यंद (आंखों में जलन और पानी बहने की समस्या) में लाभ मिलता है। 
 कान का दर्द 
अगर आप कान दर्द से परेशान हैं तो पाषाणभेद के उपयोग से आप दर्द से राहत पा सकते हैं। इसके लिए पाषाणभेद की पत्तियों के रस की एक-दो बूंदें कान में डालें तो इससे दर्द से जल्दी आराम मिलता है। 
 पथरी की समस्या  
पाषाणभेद चूर्ण में सोलह गुना गोमूत्र तथा चार गुना घी मिलाकर विधिवत् सिद्ध करके सेवन करने से पथरी के इलाज में मदद मिलती है। पाषाणभेद की पत्तियों के रस की 5 एमएल मात्रा को बताशे में डालकर खाने से पथरी टूटकर निकल जाती है। 20-30 मिली पाषाणभेद काढ़े में शिलाजीत, खाँड़ या मिश्री मिलाकर पीने से पित्तज पथरी के इलाज में फायदा मिलता है।
 खांसी की समस्या
अगर आप खांसी से परेशान हैं तो पाषाणभेद का उपयोग करें। खांसी से लिए पाषाणभेद के जड़ के चूर्ण को 1-2 ग्राम मात्रा में लें और इसे शहद के साथ खाएं। इसके सेवन से खांसी के साथ-साथ फेफड़ों से जुड़े रोगों से आराम मिलता है। 
 मुंह के छाले 
मुंह में छाले होने पर पाषाणभेद की ताज़ी जड़ों और पत्तियों को चबाएं। इससे मुंह के छाले जल्दी ठीक हो जाते हैं। 
- पेट के रोग जैसे कि  कब्ज और पेचिश, दस्त में भी यह राहत दिलाता है। 
 मूत्र संबंधी रोग 
मूत्र संबंधित कई बीमारियां होती हैं जैसे पेशाब कम होना, पेशाब करते समय दर्द या मूत्र मार्ग में संक्रमण (यूटीआई) आदि। विशेषज्ञों के अनुसार इन समस्याओं में पाषाणभेद का उपयोग करना लाभदायक होता है। 
 घाव को ठीक करने में मदद करता है  
पाषाणभेद के तने के रस को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है। इसके अलावा पाषाणभेद की जड़ का पेस्ट लगाने से भी घाव जल्दी ठीक होते हैं और जलन कम होती है। 
(नोट- कोई भी उपचार योग्य चिकित्सक की सलाह पर ही करना उचित होता है) 

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