भोजन करते समय पानी पीना चाहिए या नहीं...क्या कहता है आयुर्वेद और विज्ञान
भोजन और जल का बहुत ही घनिष्ठ संबंध है। आमतौर पर भोजन करते समय सभी लोग पानी पीते हैं। परन्तु भोजन करते समय व भोजन करने के आधे घंटे या 1 घंटे तक पानी न पीना ही लाभकारी होता है। भोजन के समय पानी न पीना पाचन क्रिया के लिए अच्छा होता है। भोजन के समय पानी न पीने से पानी की अनुपस्थिति में भोजन को पचाने वाला रस भोजन में मिलकर भोजन को जल्दी रस बनाने में "पाचनतंत्र" की मदद करता है। जब भोजन करने के आधे घंटे या 1 घंटे बाद पानी पीते हैं तो वह रस पानी में मिलकर शुद्ध होकर धमनी के द्वारा आसानी से शरीर के पूरे अंग तक पहुंच जाता है। परन्तु भोजन के समय पानी का सेवन न करना भोजन के प्रकार पर निर्भर करता है।
यदि भोजन सादा हो तो भोजन के समय पानी न पीना लाभकारी होता है। लेकिन जब भोजन अधिक तीखा, मिर्च-मसालेदार, नमकीन, खट्टा हो तो पानी पीना आवश्यक है, क्योंकि ऐसे भोजन से शरीर में मौजूद नमी को बनाए रखने वाली ग्रंथि में उत्तेजना पैदा होती है और उसे शांत करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। ऐसे में भोजन करते समय यदि पानी न पिया जाए तो शरीर को हानि हो सकती है। ऐसे पदार्थों के सेवन से प्यास उत्पन्न होती है तथा भोजन की तेज गर्मी को शांत करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत यदि भोजन सात्विक (सादा) व प्राकृतिक हो और भोजन को अच्छी तरह से चबा-चबाकर खाते हैं तो भोजन के बीच पानी पीने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
भोजन करते समय पानी पीने के संबन्ध में प्राचीन आयुर्वेद के महर्षियों ने उपदेश देते हुए कहा है-
" अत्यम्बुपानान्न विपच्यतेनं निरम्बुपानांच स एव दोष
तामान्नरो बन्हिविवर्धनय, मुहुर्मुर्वारि विवेद् भूरि।
अर्थात भोजन करते समय जिसे खुश्की आती हो और भोजन के बीच-बीच में पानी पीने की आवश्यकता हो तो ऐसी स्थिति में यदि पानी के स्थान पर दही या मठे का सेवन करें तो पानी से अधिक लाभ होता है। प्राचीन वैद्यक ग्रंथों में भोजन के समय पानी पीने के संबन्ध में लिखा गया है-
भुक्तस्यादौ जलं पीतं काश्र्य मन्दाग्नि दोष कृत
अर्थात वैद्यक ग्रंथों में कहा गया है कि भोजन करने के लिए बैठते समय पानी पीने से मन्दाग्नि उत्पन्न होती है।
आदावन्ते विषं वारि मध्येयासृतोमम
अर्थात भोजन करने से पहले और भोजन कर चुकने के बाद पानी पीना विष के समान है।
भोजन और पानी के संबन्ध में भोजन करते समय पानी न पीने का एक अन्य कारण भी हो सकता है। हम जानते हैं कि जो भोजन हम करते हैं, उसमें दो तिहाई से तीन चौथाई भाग पानी होता है। इसलिए भोजन के समय पानी बहुत ही कम मात्रा में पीना चाहिए। परन्तु बिल्कुल पानी को नहीं छोडऩा चाहिए। इससे भोजन को पचाने के लिए उत्पन्न पाचक रस की उत्पत्ति में कमी होकर चर्वण क्रिया अर्थात भोजन को अच्छी तरह चबाने की क्रिया में रुकावट उत्पन्न हो सकती है, जिससे भोजन के प्रत्येक ग्रास को बिना सही रूप से चबाए ही निगल जाने की आदत पड़ जाती है और स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। भोजन करने और पानी पीने का समय अलग-अलग होना चाहिए। इस तरह मनुष्य भोजन के समय पानी को न पीने की आदत बना सकते हैं, परन्तु इसके लिए भोजन का सात्विक व प्राकृतिक होना आवश्यक है।
भोजन और पानी के विषय में वैज्ञानिकों का मत
यूरोपीय वैज्ञानिकों ने भोजन के समय पानी पीने की दिशा में अनेक प्रयोग किये हैं और उन्होंने सिद्ध किया है कि भोजन के तुरन्त बाद पानी पीना हानिकारक है और भोजन के कम से कम आधा या 1 घंटे बाद पानी पीना लाभकारी है। भोजन करने के लगभग 2 घंटे बाद 2 गिलास पानी पीना लाभकारी होता है। इस तरह भोजन के आधे घंटे या 1 घंटे या 2 घंटे बाद पानी पीने वाले व्यक्ति को पेट का किसी भी प्रकार का कोई रोग नहीं होता। आयुर्वेद शास्त्र में लिखा गया है-
तृषितस्तु न चाश्नीयात्क्षुधितो न पिवेज्जलम
तृषितस्तु भवेद्गुल्मी क्षुधि तस्तु जलोदरी।।
अर्थात आयुर्वेद में लिखा गया है- ंंप्यास लगने पर पानी के स्थान पर भोजन देना हानिकारक होता है। इससे व्यक्ति में गुल्म (गैस) आदि पेट के रोग उत्पन्न होते हैं और भूख लगने पर भोजन के स्थान पर पानी पिलाने से व्यक्ति में जलोदर (ड्राप्सी) रोग होने का खतरा रहता है। अत: प्यास लगने पर पानी पीना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।
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