टीबी के इलाज में फायदेमंद साबित हो सकती है हल्दी
जब कोई टीबी का मरीज खांसता, छींकता, थूकता, जोर जोर से बात करता या गाना गाता है तो हवा में ड्रॉपलेट्स रिलीज होते हैं जिसमें बीमारी फैलाने वाला बैक्टीरिया मौजूद होता है। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति उसी दूषित हवा को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेता है तो उस व्यक्ति को भी टीबी की बीमारी हो जाती है। टीबी एक गंभीर संक्रामक बीमारी है जिसके लक्षणों का अगर समय रहते पता चल जाए तो इलाज संभव है।
टीबी के इलाज में मदद कर सकती है हल्दी
भारतीय वैज्ञानिकों ने टीबी के इलाज के संबंध में एक खोज की है जिसके मुताबिक भारतीय रसोई घर में पाया जाने वाला सबसे कॉमन मसाला हल्दी , टीबी के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल, हल्दी में कक्र्युमिन होता है जो हल्दी का बेसिक इन्ग्रीडिएंट है। कक्र्युमिन, टीबी के स्टैंडर्ड इलाज की क्षमता को बढ़ाने के साथ ही इलाज में लगने वाले समय में भी 50 प्रतिशत तक की कमी करने में मदद करता है।
रीइंफेक्शन को होने से रोकता है कक्र्युमिन
इसके अलावा टीबी के ज्यादातर मरीजों में एक और बेहद कॉमन समस्या रहती है- रीइंफेक्शन की यानी बीमारी के दोबारा वापस लौटने की, लेकिन जब टीबी के मरीजों में टीबी के स्टैंडर्ड इलाज के साथ ही कक्र्युमिन नैनो पार्टिकल्स का भी इस्तेमाल किया गया तो टीबी रीइंफेक्शन की आशंका बिल्कुल ना के बराबर हो गई। औषधीय गुणों से भरपूर हल्दी, एक ऐसा मसाला है जो संक्रामक बीमारियों के साथ ही इन्फ्लेमेशन को भी कम करने में मदद करती है।
कोशिकाओं से बैक्टीरिया को बाहर करता है कक्र्युमिन
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकोलोसिस बैक्टीरिया जो टीबी की बीमारी के लिए जिम्मेदार है उसे इंसान के शरीर में मौजूद संक्रमित कोशिकाओं से बाहर निकालने में मदद करता है हल्दी में पाया जाने वाला कक्र्युमिन। हल्दी के कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं, ऐसे में टीबी के इलाज में हल्दी का इस्तेमाल किया जा सकता है.। हालांकि इस संबंध में अभी और अधिक रिसर्च की जरूरत है।
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