सूजन सहित अनेक बीमारियों में फायदेमंद है चिरायता
चिरायता (Swertia chirata) ऊंचाई पर पाया जाने वाला औषधीय पौधा है । इसके पेड़ 2 से 4 फुट ऊंचे एक-वर्षायु या द्विवर्षायु होते हैं । इसकी पत्तियां और छाल बहुत कड़वी होती और ज्वर-नाशक तथा रक्तशोधक मानी जाती है। इसकी छोटी-बड़ी अनेक जातियां होती हैं; जैसे-कलपनाथ, गीमा, शिलारस, आदि। किरात और चिरेट्टा इसके अन्य नाम हैं। इसका जिक्र चरक संहिता मेंं भी मिलता है।
यह हिमालय प्रदेश में कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक 4 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर मिलता है । नेपाल इसका मूल उत्पादक देश है । कहीं-कहीं मध्य भारत के पहाड़ी इलाकों और दक्षिण भारत के पहाड़ों पर उगाने के प्रयास किए गए हैं ।
चिरायता एक जड़ी-बूटी है। आयुर्वेद के मतानुसार चिरायता का रस तीखा, गुण में लघु, प्रकृति में गर्म तथा कड़वा होता है। यह बुखार, जलन और कृमिनाशक होता है। चिरायता त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को नष्ट करने वाला, प्लीहा व यकृत (तिल्ली और जिगर) की वृद्धि को रोकने वाला, आमपाचक, उत्तेजक, अजीर्ण, अम्लपित्त, कब्ज, अतिसार, प्यास, पीलिया, अग्निमान्द्य, संग्रहणी, दिल की कमजोरी, रक्तपित्त, रक्तविकार, त्वचा के रोग, मधुमेह, गठिया का नाशक, जीवनीशक्तिवद्र्धक गुणों से युक्त है। इसका उपयोग अनेक बीमारियों के उपचार में किया जाता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी यह काफी मददगार है।.
चिरायता मन को प्रसन्न करता है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है। यह सूजनों को नष्ट करता है। दिल को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। चिरायता जलोदर (पेट में पानी भरना), सीने का दर्द और गर्भाशय के विभिन्न रोगों को नष्ट करता है। यह खून को साफ करता है तथा कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो चिरायता उसे नष्ट कर देता है। इसका कड़वापन ही इस औषधि का विशेष गुण होता है।
चिरायता में पीले रंग का एक कड़ुवा अम्ल-ओफेलिक एसिड होता है । इस अम्ल के अतिरिक्त अन्य जैव सक्रिय संघटक -दो प्रकार के कडुवे ग्लाग्इकोसाइड्स चिरायनिन और एमेरोजेण्टिन, दो क्रिस्टलीयफिनॉल, जेण्टीयोपीक्रीन नामक पीले रंग का एक न्यूट्रल क्रिस्टल यौगिक तथा एक नए प्रकार का जैन्थोन जिसे सुअर्चिरन नाम दिया गया है । एमेरोजेण्टिन नामक ग्लाईकोसाइड विश्व के सर्वाधिक कड़वे पदार्थों में से एक है । यह सक्रिय घटक ही चिरायता की औषधीय क्षमता का प्रमुख कारण भी है ।
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