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राष्ट्रपति  द्रौपदी मुर्मू की सादगी उनकी सफलता की कुंजी है : मुर्मू के शिक्षक

  रायरंगपुर (ओडिशा) ।राष्ट्रपति  द्रौपदी मुर्मू सादगी में विश्वास करती हैं और वह हमेशा दूसरों की सहायता करती रहीं हैं। मुर्मू की शिक्षक और उनके मित्रों ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि मुर्मू बदले में कुछ मांगे बिना जरूरतमंदों की मदद करती हैं। बचपन से ही उनसे जुड़े लोगों का मानना ​​​​है कि सादगी उनकी सफलता की कुंजी है। रायरंगपुर अधिसूचित क्षेत्र परिषद के एक पार्षद से विधायक, मंत्री और राज्यपाल तक का सफर तय करने वालीं  द्रौपदी मुर्मू   ने सोमवार को देश के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली ।

उपरबेड़ा गांव में मुर्मू के उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक बासुदेव बेहरा ने कहा कि भौतिकवादी आधिपत्य छोड़ना उनका एक अंतर्निहित गुण रहा। बेहरा ने एक घटना को याद करते हुए कहा, ‘‘द्रौपदी के पिता बिरंच टुडू उपरबेड़ा गांव के प्रधान थे और परिवार गरीबी से जूझ रहा था। वह एक फ्रॉक में स्कूल आती थीं और उनके पास ज्योमेट्री बॉक्स नहीं होता था। स्कूल ने उन्हें ज्योमेट्री बॉक्स प्रदान किया था।'' उन्होंने कहा कि स्कूल में एक छोटा ‘पुस्तक बैंक' था, जहां से ऐसे छात्र किताबें ले सकते थे जो इन्हें खरीदने का खर्च नहीं उठा सकते थे। बेहरा ने कहा, ‘‘द्रौपदी ने पुस्तक बैंक से किताबें ली थीं। हालांकि, जब उन्होंने हमारे उच्च प्राथमिक विद्यालय में सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की, तो उन्होंने न केवल वे किताबें लौटा दीं, बल्कि दूसरों की मदद के लिए अपनी किताबें और नोट्स भी प्रदान किये।'' इसके अलावा, स्कूल में ब्लैकबोर्ड की सफाई के लिए ‘डस्टर' भी नहीं थे। मुर्मू के मददगार स्वभाव को याद करते हुए शिक्षक ने कहा, ‘‘द्रौपदी अक्सर सभी कक्षाओं के लिए हाथ से बने डस्टर उपलब्ध कराती थीं। उन्होंने फटे कपड़ों से ये डस्टर बनाये थे।''

मुर्मू की सहपाठी रहीं तन्मयी बिसोई ने भी उनसे जुड़ी यादें साझा कीं।  बिसोई ने कहा, ‘‘द्रौपदी बहुत ही विनम्र रहीं हैं । वह कभी किसी से कुछ नहीं मांगेगीं। जब भी हम दोस्त एक जगह इकट्ठे होते थे, तो उनके पास जो कुछ भी खाना होता था, वह बांट देती थीं। वह दूसरों से लेने में नहीं बल्कि देने में विश्वास रखती हैं।'' विधायक राजकिशोर दास ने कहा कि 2009-2015 के बीच अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खोने वालीं मुर्मू ने गरीब बच्चों को शिक्षित करने की अपनी प्रतिबद्धता के चलते अपने पति और बेटों की याद में एक स्कूल स्थापित करने के लिए अपने सास-ससुर का घर और संपत्ति दान कर दी। मुर्मू का ससुराल गांव पहाड़पुर में है, जहां स्थापित एसएलएस (श्याम-लक्ष्मण-सिपुन) आवासीय विद्यालय में अब 100 गरीब छात्र-छात्राओं को शिक्षा प्रदान की जाती है। स्कूल के प्रधानाध्यापक जे. गिरि ने कहा, ‘‘मैडम (मुर्मू) झारखंड की राज्यपाल रहते हुए भी साल में कम से कम दो बार स्कूल का दौरा करती थीं।'' गिरि ने कहा कि मुर्मू ने स्कूल के लिए 3.20 एकड़ जमीन दान में दी है जो कक्षा 6-10 तक की शिक्षा प्रदान करता है। गिरि ने कहा, ‘‘उन्होंने (मुर्मू) उच्च विद्यालय की स्थापना की क्योंकि मुर्मू को अपने गांव के स्कूल से सातवीं कक्षा पास करने के बाद खुद बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा था। वह नहीं चाहतीं कि अन्य बच्चों को भी इसी तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़े। 

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