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मोदी सरकार में क्षेत्रीय परिषदें केवल चर्चा का मंच नहीं बल्कि 'सहयोग का इंजन' बन गई हैं: अमित शाह

रांची. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बृहस्पतिवार को कहा कि क्षेत्रीय परिषदें महज चर्चा के मंच से आगे बढ़कर ‘सहयोग के इंजन' में तब्दील हो गई हैं। उन्होंने कहा कि उनकी बैठकों में उठाए गए 83 प्रतिशत मुद्दों का समाधान हो चुका है। शाह ने यह टिप्पणी 27वीं पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में की, जिसमें झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी सहित चार पूर्वी राज्यों - झारखंड, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। शाह ने कहा, ‘‘मोदी सरकार के तहत, क्षेत्रीय परिषदें महज ‘चर्चा के मंच' से बढ़कर ‘सहयोग के इंजन' में बदल गई हैं। क्षेत्रीय परिषद की बैठकों के दौरान 83 प्रतिशत मुद्दों का समाधान इन मंचों की प्रभावशीलता और बढ़ते महत्व को रेखांकित करता है।'' आज की बैठक में मसानजोर बांध, तैयबपुर बैराज और इंद्रपुरी जलाशय से संबंधित लंबे समय से लंबित जटिल मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई, साथ ही बिहार और झारखंड राज्यों के बीच कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) की परिसंपत्तियों और देनदारियों के बंटवारे से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा की गई, जो बिहार के विभाजन के समय से लंबित हैं। शाह ने कहा कि 2004 से 2014 के बीच क्षेत्रीय परिषदों की 25 बैठकें हुई थीं जिनकी संख्या 2014 से 2025 के बीच बढ़कर 63 हो गई। शाह ने कहा, ‘‘हम प्रति वर्ष औसतन 2 से 3 बैठकों से आगे बढ़कर प्रति वर्ष औसतन 6 बैठकें करने लगे हैं। इन बैठकों में कुल 1,580 मुद्दों पर चर्चा की गई, जिनमें से 1287 यानी 83 प्रतिशत मुद्दों का समाधान कर दिया गया है।'' गृह मंत्री ने कहा कि केंद्र नए सिरे से ध्यान देते हुए और नयी दिशा के साथ राज्यों के विकास को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है। शाह ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सहकारी संघवाद के आधार पर देश के सामने टीम भारत का विजन प्रस्तुत किया है। ...राज्यों के विकास के माध्यम से भारत के विकास और 2047 तक भारत को पूर्ण विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम सभी को मिलकर आगे बढ़ना चाहिए।'' उन्होंने कहा कि पूर्वी राज्यों को तीन नए आपराधिक कानूनों के शीघ्र कार्यान्वयन की दिशा में और अधिक प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि इन राज्यों में मादक पदार्थों पर नियंत्रण के मामले में भी और अधिक काम किए जाने की आवश्यकता है, जिसके लिए जिला स्तरीय एनसीओआरडी बैठकें नियमित रूप से आयोजित की जानी चाहिए। शाह ने चारों राज्यों को नक्सल समस्या को खत्म करने में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया और कहा कि 31 मार्च, 2026 तक इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। गृह मंत्री ने कहा कि बिहार, झारखंड और ओडिशा काफी हद तक नक्सलवाद से मुक्त हो चुके हैं, जबकि पश्चिम बंगाल पहले ही इस समस्या से मुक्त हो चुका है। बैठक में भारत के सशस्त्र बलों की बहादुरी के लिए सर्वसम्मति से धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया गया।

शाह ने कहा, ‘‘ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, हमारी सेनाओं ने पूरी दुनिया के सामने अद्वितीय वीरता, सटीकता और बहादुरी का प्रदर्शन किया है।'' उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दृढ़ संकल्प दिखाया है और वैश्विक समुदाय को आतंकवाद के विरुद्ध भारत के दृढ़ रुख का स्पष्ट संदेश दिया है।'' बैठक में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों की त्वरित जांच, उनके शीघ्र निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (एफटीएससी) का कार्यान्वयन, प्रत्येक गांव के निर्दिष्ट क्षेत्र में भौतिक बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करना, आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली का कार्यान्वयन आदि मुद्दों पर चर्चा की गई। अधिकारियों ने बताया कि सोरेन ने बैठक में राज्य से संबंधित 31 मुद्दे उठाए, जिनमें कोयला क्षेत्र के केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों पर 1.36 लाख करोड़ रुपये के बकाया का मुद्दा भी शामिल है। उन्होंने ‘एमएसएमई' के माध्यम से बेहतर बुनियादी ढांचे और रोजगार सृजन का आह्वान किया। झारखंड ने आदिवासियों के लिए अलग सरना धार्मिक संहिता का मुद्दा भी उठाया।

बुधवार रात राज्य की राजधानी पहुंचे शाह बैठक के बाद एक विशेष विमान से दिल्ली के लिए रवाना हो गए।

सोरेन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स' पर एक पोस्ट में कहा कि मांगों में सार्वजनिक उपक्रमों में स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता, खदानों को सुरक्षित तरीके से बंद करना और पर्यटन को बढ़ावा देना तथा आदिवासी विरासत की रक्षा के लिए केंद्र का समर्थन शामिल हैं। राज्य में बुनियादी ढांचे को बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें महत्वपूर्ण रेलवे और राजमार्ग योजनाओं के अलावा एक मेट्रो परियोजना का प्रस्ताव भी शामिल है। बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा, ‘‘बिहार के विभाजन के बाद बिहार और झारखंड के बीच संपत्ति के बंटवारे सहित लंबित मुद्दों को सुलझाने के लिए एक समिति का गठन किया गया।'' अधिकारियों के अनुसार, झारखंड ने कोयला क्षेत्र (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम में संशोधन की मांग की ताकि खनन कंपनियां खनन पूरा होने के बाद राज्य सरकार को जमीन वापस कर दें।

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