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तंबाकू उत्पाद अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन से लाखों महिलाओं की आजीविका पर संकट: अध्ययन
बेंगलूरु। सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन से लाखों महिलाओं की आजीविका खतरे में पड़ गई है। एक अध्ययन में यह कहा गया है। कानून में 10 ए (3) उपधारा को शामिल करने से किसी व्यक्ति को किसी भी तंबाकू उत्पाद के निर्माण, बिक्री और वितरण के लिए लाइसेंस, अनुमति और पंजीकरण प्राप्त करना अनिवार्य बना दिया गया है। इससे लाखों महिलाओं की आजीविका खतरे में पड़ गई है। मानवाधिकार वकील विभा वासुकी और मानव विज्ञान (एंथ्रॉपॉलिजी) के वरिष्ठ प्रोफेसर शिव प्रसाद रामभाटला के अध्ययन में कहा गया है, ‘‘यदि कानून में इस उपधारा को लागू किया जाता है, तो यह उन छोटे विक्रेताओं के लिए एक अत्यंत कठोर उपाय साबित होगा, जिनके पास इस तरह का लाइसेंस प्राप्त करने की क्षमता या वित्तीय साधन नहीं है।'' इसमें यह कहा गया है कि तंबाकू उत्पाद ज्यादातर छोटे विक्रेताओं और फेरीवाले बेचते हैं, जिनके पास तंबाकू उत्पाद बेचने के लिए एक छोटा खोमचा ही होता है। बीड़ी की अधिकांश बिक्री पेड़ों के नीचे और फुटपाथों पर स्थित छोटी दुकानों से होती है, जिन्हें नगर निगमों द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होगी या लाइसेंस नहीं दिया जाएगा।  बीड़ी बनाने वाली महिलाओं के लिए वैकल्पिक रोजगार योजनाओं की स्थिति पर एक अध्ययन'' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के लेखकों ने यह कहा है। उन्होंने कहा है, इसलिए बीड़ी की पूरी बिक्री अचानक ठप हो जाएगी। अगर बीड़ी की बिक्री ठप हो गई तो पूरा बीड़ी उद्योग ठप हो जाएगा।'' अध्ययन में इस संशोधन का देश में लाखों महिला बीड़ी ‘रोलर्स' पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक उनकी आजीविका के लिए बड़े पैमाने पर कौशल-निर्माण और वैकल्पिक रोजगार प्रदान नहीं किया जाता है, तब तक बीड़ी व्यवसाय में लगी देश की लाखों महिलाओं के लिए यह एकमात्र व्यावहारिक व्यवसाय है। भारत में लगभग 7.7 प्रतिशत वयस्क बीड़ी पीते हैं, जिनकी भारत में सभी धूम्रपान उत्पादों के बाजार में 85 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। अध्ययन में दावा किया गया है कि तंबाकू विरोधी कानून से सबसे अधिक नुकसान बीड़ी उद्योग को होगा। अध्ययन में बताया गया है कि निर्माण प्रक्रिया अत्यधिक श्रम साध्य है। सौ साल से अधिक पुराने इस कुटीर उद्योग में ज्यादातर असंगठित क्षेत्र के कामगारों को रोजगार मिलता है, जिसमें मुख्य रूप से गरीब घरों की महिला श्रमिक शामिल हैं। कुल बीड़ी श्रमिकों में से 96 प्रतिशत घर पर रहते हैं, जबकि केवल चार प्रतिशत ही कारखानों में काम करते हैं। अध्ययन के अनुसार, इसमें बहुसंख्यक (84 प्रतिशत) घरेलू कामगार महिलाएं हैं जबकि केवल 16 प्रतिशत पुरुष हैं।

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