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 बिन्दु आदि में ध्यान लगाने में क्या हानि है? क्या अपने साधन बल से वास्तविक सुख-शान्ति पाना सम्भव है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 378

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने विश्वशांति के अपने उपदेश में कहा है कि एकमात्र श्रीकृष्ण की भक्ति से ही विश्व में शांति सम्भव है। समस्त झगड़े, समस्त वाद-विवाद का समाधान इस सिद्धान्त को भलीभांति समझ लेने में है कि सभी जीव एक उसी भगवान के ही सनातन अंश हैं। एक बार किसी व्यक्ति ने उनसे प्रश्न किया था कि महाराज जी! किसी व्यक्ति विशेष के लिये 'शुभकामना' करना ठीक है? श्री कृपालु महाप्रभु जी ने उत्तर दिया था;

"..वेद कहता है कि सबके लिये शुभकामना होनी चाहिये, एक दो चार के लिये नहीं...."

उनके समस्त प्रवचनों और व्यक्तित्व में इसी ओर प्रकाश है कि वे सदैव सम्पूर्ण विश्व को अपना मानते थे और सबको कल्याण के पथ पर चलाने के लिये अथक प्रयास किया। आइये आज के अंक में प्रकाशित उनके सिद्धान्त-दर्शन का चिंतन-मनन करें...

★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)

अब जान्यो साधन बल कान्हा,
कोउ न पाव सुख कान्हा, कान्हा कान्हा कान्हा।
साधनहीन दीन बनि कान्हा,
जो प्रपन्न हो कान्हा, कान्हा कान्हा कान्हा।
माँगत दिव्य प्रेम जो कान्हा,
शिशु जनु रो कर कान्हा, कान्हा कान्हा कान्हा।
वा पर कर 'कृपालु' तू कान्हा,
कृपा वृष्टि नित कान्हा, कान्हा कान्हा कान्हा।।

भावार्थ ::: भक्त कहता है - हे कृष्ण! अब मेरी बुद्धि ऐसा मानती है कि अपने साधन बल से कोई भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। जो अपने साधन बल का अभिमान छोड़कर निरभिमानी बनकर तुम्हारे शरणागत हो जाता है और नवजात शिशु की भाँति करुण क्रन्दन करते हुये तुमसे दिव्यप्रेम की याचना करता है, उस पर तुम निरन्तर अपनी कृपा की वर्षा करते हो।

• सन्दर्भ ग्रन्थ ::: युगल रस, कीर्तन संख्या 17
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★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)

...कुछ लोग ईश्वर में मन न लगाकर बिन्दु आदि में मन को केन्द्रित करते हुए मन का वशीकरण करते हैं, किन्तु इसमें दो हानियाँ हैं। एक तो यह कि मन बिना दिव्य रस पाये सदा के लिए एकाग्र नहीं हो सकता। दूसरे, अनन्तानन्त जन्मों के संस्कार एवं अविद्या के नाश हुए बिना वह क्षणभंगुर एकाग्रता पुनः संसार में वापस पहुँचा देती है। अतएव ईश्वर में ही मन केंद्रित करना चाहिए, जिससे संसार से भी छुट्टी मिले एवं सदा के लिये छुटटी मिले तथा ईश्वरीय दिव्य लाभ भी सदा के लिये हो जाय। पुनः एक बात और भी है, वह यह कि किसी बिन्दु आदि में मन लगाने में कठिनाई भी है, किन्तु ईश्वर संबंधी दिव्य परमाकर्षण रूप-गुण-लीलादि में मन लगाना स्वभावतः सुगम है। अतएव हमें भक्ति करते समय भगवान का रूपध्यान अवश्य करना है...

• संदर्भ पुस्तक ::: प्रेम रस सिद्धांत, पृष्ठ संख्या 215

★★★
ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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