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  कृष्ण और उनके ग्वाल सखा
 आज  मित्रता दिवस  है। संसार में सबके अनेक मित्र, दोस्त आदि होते हैं, किन्तु शास्त्र की दृष्टि से देखें तो हम सभी भगवान के अंश हैं और अंश होने के नाते भगवान से ही हमारे समस्त संबंध हैं। अत: हमारे वास्तविक मित्र, सखा, यार भी एकमात्र भगवान ही हैं। ब्रजलीला में कृष्ण और उनके ग्वाल सखाओं की मित्रता सर्वोच्च है। भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपनी  प्रेम रस मदिरा  ग्रंथ में इस मधुर सख्य रस की एक सुंदर झांकी प्रस्तुत की है, आइये उस झांकी के दर्शन करें...
देखो देखो री, ग्वाल-बालन यारी।
इन ग्वालन मुख छोरि-छोरि हरि, खात कौर कहि बलिहारी।
रिझवत खेल जिताय सखन को, घोड़ा बनि बनि बनवारी।
कबहुंक देत रिसाय सखन कहँ, पुनि तिन सुनत मधुर गारी।
नख धारयो गोवर्धन-गिरि जब, सखन कह्यो हम गिरिधारी।
सो  कृपालु  छवि अनुपम जब कह, द्वै तातरु द्वै महतारी।।
 भावार्थ - एक रसिक कहता है, अरे! इन निरक्षर-भट्टाचार्य ग्वाल बालों के प्रेम की महिमा तो देखो। इन ग्वाल बालों के मुख से छीन-छीनकर उच्छिष्ट कौर स्वयं भगवान विभोर होकर खा रहे हैं। कभी इन सखाओं को खेल में जीता देते हैं और स्वयं उनका घोड़ा बनकर उन्हें सुख पहुंचाते हैं और कभी उन्हें क्रुद्ध कर देते हैं एवं उनकी परमात्मीयतायुक्त साधिकार गाली सुनकर आनन्दित होते हैं। जब श्यामसुन्दर ने गोवर्धन पहाड़ उठाया तब ग्वाल बालों ने कहा कि कन्हैया ने तो केवल एक नाखून से ही छू रखा था, वास्तव में गिरिधारी तो हम लोग हैं (क्योंकि हमने तो अपनी-अपनी लाठियां लगाई थीं)।  श्री कृपालु जी  कहते हैं कि हमें तो वह छवि सबसे मधुर लगती है जब सखाओं द्वारा, दो पिता एवं दो माता वाला कहे जाने पर रोदनशील बन जाती है।
( रचयिता - भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
पद एवं भावार्थ स्त्रोत -प्रेम रस मदिरा ग्रंथ, रसिया माधुरी, पद संख्या 7)

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