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  वेद से लेकर रामायण तक और हर संत-महापुरुष साधना पर जोर क्यों देते हैं? साधक के जीवन में साधना का क्या महत्व है?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 382

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने विभिन्न धर्मानुयायियों को दिव्य प्रेम का संदेश देकर सबको एक सूत्र में बाँधकर आपसी झगड़े समाप्त करके श्रीकृष्ण भक्तिरूपी एक सार्वभौमिक मार्ग का प्रतिपादन किया जो सभी धर्मानुयायियों को मान्य है। 'जगदगुरु कृपालु परिषत' के सभी केन्द्रों में विश्वबन्धुत्व का सुन्दर स्वरूप देखने को मिलता है, जहाँ सभी जाति, सभी सम्प्रदाय, अनेक प्रान्तों, अनेक देशों के लोग पूर्ण समर्पण और त्याग के साथ सेवा करते हुये दिखाई देते हैं। विश्वशान्ति के हेतु विश्वबन्धुत्व ही आज की प्रमुख माँग है। आचार्य श्री के प्रवचन तथा सिद्धान्त इस ओर हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं। आइये ऐसे समन्वयवादी जगदगुरु के द्वारा प्रदत्त तत्वज्ञान का मनन करें....

★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)

राधे नाम पुकारत राधे, बरसावति जलधार।
मोहिं 'कृपालु' अब भय काको जब, श्री राधे रखवार।।

भावार्थ ::: किशोरी जी दीनों के लिये इतनी सरल हैं कि जब भी दीन, आर्त भाव से 'राधे' कहकर उन्हें पुकारता है तब किशोरी जी भी अधीर होकर अपनी आँखों से आँसू बहाने लगती हैं। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि जब ऐसी ही सरल, सुकुमार, अलबेली सरकार वृषभानुदुलार (श्रीराधा) हमारी रखवार हैं तब मुझे डर ही किसका है।

संदर्भ ग्रन्थ ::: प्रेम रस मदिरा, सिद्धान्त-माधुरी, पद संख्या 102 का अंश
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★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)

...पहले साधन करके हम अन्तःकरण शुद्ध करेंगे, तब भगवान् स्वरूप-शक्ति देंगे गुरु के द्वारा, तब अन्तःकरण दिव्य होगा। इन्द्रियाँ भी दिव्य हो जायेंगी। तब फिर वो नित्य सिद्ध प्रेम भगवत्कृपा या गुरु कृपा से मिलेगा, उसका दाम नहीं दे सकते हम। हमारी इन्द्रियाँ, हमारा मन, हमारी बुद्धि मैटेरियल है, मायिक है, मायिक साधन से दिव्य वस्तु नहीं मिल सकती। कोई भी ऐसी साधना नहीं है, तपश्चर्या नहीं है, जिससे भगवत्प्रेम मिल जाय। लेकिन भगवत्प्रेम भगवत्कृपा, गुरु-कृपा से जो मिलता है उसके लिए बर्तन चाहिए। तो बर्तन बनाने की ड्यूटी जीव की है। इसलिये साधन आवश्यक है। वेद से लेकर रामायण तक भगवान् और संत सब कहते हैं न, साधना करो, भक्ति करो। गीता हो, भागवत हो, हर ग्रन्थ में भरा पडा है। क्यों कहते हैं? इसलिये कि तुम्हारी ड्यूटी है अन्तःकरण का पात्र बनाना। उसमें सामान जो दिया जायेगा वो फ्री में, उसका दाम तुम दे भी नहीं सकते और लिया भी नहीं जायेगा। फ्री में भगवत्प्रेम मिलेगा। गुरु देगा, लेकिन पात्र बनाना हमारी ड्यूटी है। इसलिये साधना से साध्य मिलेगा, ऐसा कहा जाता है।

• संदर्भ पुस्तक ::: प्रश्नोत्तरी भाग – 3, पृष्ठ संख्या 67 एवं 68

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ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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