गणेश चतुर्थी को क्यों कहा जाता है पत्थर चौथ !
गजानन गणपति का जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी 10 सितंबर शुक्रवार को है। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ये उत्सव शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी तक चलता है। मान्यता है कि इस चतुर्थी को दोपहर के समय गणपति का जन्म हुआ था। गणपति का जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में चलने वाले 10 दिन के इस उत्सव को देश के तमाम हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है।
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को पत्थर चौथ और कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने की मनाही होती है। मान्यता है कि इस दिन अगर भूलवश भी चंद्र दर्शन हो जाए तो व्यक्ति को पाप लगता है और झूठा आरोप झेलना पड़ता है। जानिए इस दिन को क्यों कहा जाता है पत्थर चौथ और कलंक चतुर्थी और अगर भूलवश चंद्र दर्शन हो जाएं, तो उसका क्या निवारण है !
ये है कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गणपति प्रेमपूर्वक अपने पसंदीदा मिष्ठान खा रहे थे। उनके आसपास मिष्ठान के थाल सजे हुए थे। तभी चंद्रदेव वहां से गुजरे। गणपति को खाते हुए देख वे उनके पेट और सूंड को लेकर मजाक बनाने लगे और जोर-जोर से हंसने लगे। चंद्र देव का ये रूप देखकर गणेश भगवान को बहुत क्रोध आया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि तुम्हें अपने रूप का गुमान है, इसलिए मैं श्राप देता हूं कि तुम अपना रूप खो दोगे। तुम्हारी सारी कलाएं नष्ट हो जाएंगी और जो भी तुम्हारे दर्शन करेगा, उसे कलंकित होना पड़ेगा। जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि थी।
गणपति के इस श्राप के बाद चंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हो गया। उन्होंने सभी देवी देवताओं के साथ मिलकर गणपति की पूजा की और उन्हें प्रसन्न कर अपनी भूल की क्षमा याचना की। तब गणपति ने उनसे एक वरदान मांगने को कहा। सभी देवताओं ने चंद्रदेव को माफ करने और श्राप को निष्फल करने का वरदान मांगा। तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन इसे सीमित जरूर कर सकता हूं।
भगवान गणेश ने कहा कि चंद्रमा की कलाएं माह के 15 दिन घटेंगी और 15 दिन बढ़ेंगी। चंद्र दर्शन से कलंकित होने का श्राप सिर्फ चतुर्थी के दिन ही मान्य होगा। चतुर्थी के दिन कोई भी चंद्रमा के दर्शन नहीं करेगा। लेकिन अगर उसे भूलवश दर्शन हो गए तो उसे इस श्राप के प्रभाव से बचने के लिए 5 पत्थर किसी दूसरे की छत पर फेंकने होंगे। इससे वो दोष मुक्त हो जाएगा। तब से इस दिन को कलंक चौथ और पत्थर चौथ कहा जाने लगा। मध्यप्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में आज भी कलंक चौथ के दिन दूसरे की छत पर पत्थर फेंकने की परंपरा है।
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