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 गोपियों के प्रेम की विशेषता क्या थी? भगवान की उपासना अनुकूल भाव से ही क्यों करनी चाहिये?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 392

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ऐसे मूल जगदगुरु हुये हैं जिन्होंने सुमधुर 'राधा' नाम तथा उनके गुणगान को विश्वव्यापी बनाया और विदेशों में जाकर श्रीराधाकृष्ण भक्ति का अधाधुंध प्रचार किया। जीवन पर्यंत उन्होंने श्री राधारानी को ही अपनी स्वामिनी मानते हुये श्रीराधा नाम गुणगान का ही दिव्य संदेश दिया है। जो राधा तत्व पुस्तकों तक ही सीमित था, उसे अत्यधिक सरल भाषा में उन्होंने समझाया है। उनके द्वारा ही प्रगटित साहित्य-भण्डार से प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी राशि आप सबके समक्ष प्रस्तुत की जाती रही है, जिसका गहराई से चिन्तन-मनन निश्चय ही हमारी आध्यात्मिक चेतना को परिष्कृत करते हुये उसे भगवद-रस से परिप्लुत कर देगा। आइये आज के अंक में प्रकाशित इस दिव्य तत्वदर्शन पर विचार करें :::

★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)

श्याम गये मथुरा ना गई ब्रज बामा।
श्याम रुचि महँ रुचि राखें आठु यामा।।

भावार्थ ::: श्यामसुंदर ब्रजवासियों को छोड़कर मथुरा गये परन्तु गोपियाँ किंचित दूर होने पर भी कभी प्रियतम का दर्शन करने मथुरा नहीं गईं। ब्रजगोपियों ने कृष्ण को संकोच में नहीं डालना चाहा। सदा श्यामसुन्दर के सुख में ही सुखी रहना, यही गोपी प्रेम की विशेषता है।

• संदर्भ ::: श्यामा श्याम गीत, दोहा संख्या 249
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★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)

...भगवान की उपासना तो अनुकूल भाव से ही होती है। प्रतिकूल भाव से तो वही कर सकता है जिसमें उसके शक्ति के बराबर शक्ति हो। कुछ महापुरुष भगवान की उपासना अनुकूल भाव से और कुछ प्रतिकूल भाव से करते देखे जाते हैं किंतु साधारण जीव हमेशा प्रतिकूल भाव से नहीं कर सकता। भगवान की उपासना जो अनेक भावों से शास्त्रों में लिखी गयी हैं उसमें काम, क्रोध, लोभ और मोह तो लिखा है, स्नेह, भय, ऐक्य भी लिखा है लेकिन द्वेष नहीं लिखा...

• संदर्भ ::: अध्यात्म संदेश पत्रिका, मार्च 2003 अंक

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ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
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