विश्व गुरु भारत और जगदगुरुत्तम (भाग - 4)
भारतवर्ष की महिमा तथा विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के अलौकिक एवं दिव्यवतार की स्मृति - भाग - 4
(पिछले भाग से आगे)
भारत को आध्यात्मिक गुरु के पद पर आसीन करने के लिये हमारे भारत में अनेक अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष हुये, जिन्होंने वेदों, शास्त्रों के ज्ञान को सुरक्षित रखा। किन्तु वर्तमान समय में अनेक पाखण्डयुक्त मत चल गये। जो वेद शास्त्र का नाम तक नहीं जानते, ऐसे दम्भी गुरु जनता को गुमराह कर रहे हैं। वैदिक मान्यतायें लुप्त हो गई हैं। शास्त्रों, वेदों के अर्थ का अनर्थ हो रहा है। अत: लोग अज्ञानान्धकार में डूबते जा रहे हैं।
इस समय जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के द्वारा दिये गये असंख्य प्रवचन जो आज भी उनकी वाणी में उपलब्ध हैं, उनके द्वारा वेद, शास्त्र सम्मत साहित्य, ऋषि-मुनियों की परंपरा को पुनर्जीवन प्रदान कर रहा है। शास्त्रों, वेदों के गूढ़तम सिद्धान्तों को भी सही रुप में अत्यधिक सरल, सरस भाषा में प्रकट करके एवं उसे जनसाधारण तक पहुंचाकर उन्होंने विश्व का महान उपकार किया है। उन्होंने भारतीय वैदिक संस्कृति को सदा सदा के लिये गौरवान्वित कर दिया है एवं भारत जिन कारणों से विश्व गुरु के रुप में प्रतिष्ठित रहा है, उसके मूलाधार रुप में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने सनातन वैदिक धर्म की प्रतिष्ठापना की है।
उनके द्वारा उद्भूत ज्ञान कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन के नाम से जाना जाता है, जो वेदों, शास्त्रों, पुराणों, गीता, भागवत, रामायण तथा अन्यान्य धर्मग्रंथों का सार है। जो जाति-पाति, देश-काल की सीमा से परे है। सभी धर्मों के अनुयायियों के लिये मान्य है, सार्वभौमिक है। आज के युग के अनुरुप है। सर्वग्राह्य है। सनातन है। समन्वयात्मक सिद्धान्त है। सभी मतों, सभी ग्रंथों, सभी आचार्यों के परस्पर विरोधाभाषी सिद्धान्तों का समन्वय है। निखिलदर्शनों का समन्वय है। भौतिकवाद, आध्यात्मवाद का समन्वय है, जो आज के युग की माँग है। विश्व शांति और विश्व बन्धुत्व की भावनाओं को दृढ़ करते हुये शाश्वत शान्ति और सुख का सर्वसुगम सरल मार्ग है।
ऐसे जगद्वन्द्य जगदोद्धारक कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन का सम्पूर्ण जगत चिरकाल तक आभारी रहेगा।
(समाप्त)
(स्रोत- साधन साध्य पत्रिका, गुरु पूर्णिमा विशेषांक, जुलाई 2018
सर्वाधिकार सुरक्षित- जगद्गुरु कृपालु परिषत एवं राधा गोविंद समिति, नई दिल्ली)
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