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  श्रीकृष्ण तत्व
 11 अगस्त 2012 को विश्व की महानतम विभूति जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा श्रीकृष्ण तत्व पर अद्वितीय एवं ऐतिहासिक प्रवचन दिया गया। श्री कृपालु महाप्रभु जी ने वृन्दावन के संत समुदाय के समकक्ष विराजमान होकर प्रवचन दिया। श्री महाराज जी अर्थात श्री कृपालु जी ने प्रवचन का आरम्भ करते हुये कहा -
 आज से 5238 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण का आविर्भाव हुआ था और वे 125 वर्ष तक हमारे इस मृत्युलोक में रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण के स्वधामगमन करने पर कलियुग आ गया। अभी तो कलियुग को केवल 5113 वर्ष ही बीते हैं और चार लाख बत्तीस हजार वर्ष का कलियुग होता है, तो अभी ये तो प्रारम्भ है।
 संसार में लोग श्रीकृष्ण प्राकट्य दिवस को जन्माष्टमी कहते हैं, परन्तु भगवान के लिये जन्म शब्द का प्रयोग क्यों किया जाता है? श्री कृपालु महाप्रभु जी ने बताया कि, जन्म शब्द का अर्थ ही होता है - आविर्भाव। जनि प्रादुर्भावे धातु से जन्म शब्द बनता है, उसका अर्थ ही है अवतार, अर्थात किसी बड़े ऊेचे स्थान से नीचे उतरना अर्थात गोलोक से माया लोक में भगवान उतरे, इसी को अवतार कहते हैं, उसी को आविर्भाव, उसी को जन्म कहते हैं। जीवात्मा का भी मां के गर्भ में आविर्भाव होता है। जीवात्मा दिव्य है, वो मां के गर्भ में बाहर से आता है और एक दिन शरीर छोड़कर चला जाता है।
 सच्चिदानंद तत्व को ब्रम्ह कहते हैं, उसी ब्रम्ह शब्द का पर्यायवाची शब्द है - श्रीकृष्ण। कृष्ण अंतिम परात्पर तत्व है, जिसके भय से यमराज काँपता है और कृष्ण तत्व को जान लेने पर सब कुछ स्वयमेव ज्ञात हो जाता है। एक ब्रम्ह श्रीकृष्ण के अनंत रुप हैं। भागवत में भगवान श्रीकृष्ण के तीन स्वरुप बताये गये हैं - जिसमें सब शक्तियों का प्राकट्य हो वो भगवान है, जिसमें कुछ शक्तियों का प्राकट्य न हो वो परमात्मा का स्वरुप है। परमात्मा का स्वरुप तीन प्रकार का होता है - कार्णाणवशायी, गर्भोदशायी और क्षीरोदशायी। श्रीकृष्ण का तीसरा स्वरुप ब्रम्ह का है, उसका एक ही स्वरुप होता है, उसमें केवल ब्रम्हत्व, आत्मरक्षा की शक्ति और आनंदत्व, बस तीन गुणों का ही प्राकट्य होता है, अन्य शक्तियां प्रकट नहीं होती।
 वेद में ये भी कहा गया कि एक ही तत्व है ब्रम्ह और ये भी कहा गया कि तीन तत्व हैं - ब्रम्ह, जीव और माया; ये दोनों बातें वेद में कही गयी हैं। इन दोनों बातों का समन्वय यह है कि जीव और माया, ब्रम्ह की शक्तियां हैं, शक्ति शक्तिमान से पृथक नहीं होती, इसी से जीव और माया को भी ब्रम्ह कहा जाता है। भगवान जीव और माया पर शासन करते हैं। भगवान के अवतारों और उनकी लीलाओं की कोई संख्या नहीं है। भगवान के अनंत अवतार हो चुके हैं और अनंतकोटि ब्रम्हाण्ड में प्रतिक्षण भगवान के अवतार हो रहे हैं। भगवान के अवतार लेने का एक ही कारण है - करुणा। 
 भगवान का स्वरुप ही करुणा का है। भगवान जो करते हैं, वो केवल जीव कल्याण के लिये करते हैं। दास्य, सख्य, वात्सल्य और माधुर्य - इन चार भावों में से किसी भाव से भगवान से प्रेम करो। भगवान कहते हैं कि मुझे अपने से बड़ा मानो, मुझे अपने समान मानो या छोटा मानो। अपने से बड़ा मानने पर भगवान से भय लगेगा। भगवान की कृपा की बाट जोहना है, निष्काम एवं अनन्य भाव से रोकर उनको पुकारना है, तब वो अकारण करुण भगवान कृपा करके अंत:करण शुद्ध करेंगे, तब वो स्वरुप शक्ति देंगे, तब अपनी दिव्य इंद्रीय मन, बुद्धि देंगे, तब भगवान का दिव्य दर्शन आदि होगा, तब जीव कृतार्थ होगा, तब ये तत्वज्ञान होगा कि श्रीकृष्ण कौन हैं??
 (प्रेम मंदिर, वृन्दावन में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा  श्रीकृष्ण तत्व पर दिये गये प्रवचन का सार)
 स्त्रोत - जगद्गुरु कृपालु परिषत का मासिक सूचना पत्र, सितंबर 2012.

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