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 चैतन्य-रामानंद संवाद (भाग - 1)
  • जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत  प्रवचन
 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत यह प्रवचन भक्तिमार्गीय उपासकों के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें उन्होंने साधन और साध्य के संबंध में प्रवचन दिया है। श्री चैतन्य महाप्रभु जी तथा श्री राय रामानंद जी के मध्य हुई आधात्मिक चर्चा का उन्होंने बड़ी गहराई में तथा सारगर्भित विवेचन किया है। श्री कृपालु महाप्रभु जी अपने श्रीमुखारविन्द से कहते हैं.....
 चैतन्य-रामानंद संवाद (भाग - 1)
 ...साधन-साध्य के सम्बन्ध में चैतन्य महाप्रभु एवं राय रामानंद का वार्तालाप अत्यधिक महत्वपूर्ण है। चैतन्य महाप्रभु ने राय रामानंद से पूछा,
 साध्य को पाने का साधन क्या है? उन्होंने उत्तर दिया -
 स्वे स्वे कर्मण्यभिरत: संसिद्धिं लभते नर:।
स्वकर्मनिरत: सिद्धिं यथा विदन्ति तच्छ्रीणु।।
(गीता 18-45)
 अपने अपने वर्णाश्रम धर्म का पालन करने से साध्य मिल जाता है। वर्णाश्रम धर्म यानि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ये चार वर्ण; ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास ये चार आश्रम; इनके लिये वेद में जो लिखा है ऐसा करो, ऐसा न करो, ऐसा न करो। उसका जो पालन करें सेंट परसेंट वो वर्णाश्रम धर्म का धर्मी है, कर्मी है। महाप्रभु जी ने कहा - अरे! तुम भी क्या बोले रामानंद? इससे तो स्वर्ग मिलता है बस, वो भी चार दिन का, वहाँ तो माया है। रामानंद ने कहा, अच्छा-अच्छा। इसके आगे बोलो। उन्होंने कहा -
 यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय ततकुरुष्व मदर्पणम्।।
(गीता 9-27)
 स्वकर्मणा तमभ्यच-र्य सिद्धिं विदन्ति मानव:। (गीता 18-46)
 जो कुछ कर्म करो भगवान को अर्पित करो। महाप्रभु जी ने कहा - हाँ, उससे तो ये बहुत अच्छा तुमने बताया लेकिन ये साध्य नहीं है, इससे तो अंत:करण शुद्ध होता है। इसके आगे कुछ बताओ। तो उन्होंने कहा -
 सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:।।
(गीता 18-66)
 सब धर्मों को छोड़ दो और केवल मेरी भक्ति करो, मैं सब पापों से छुटकारा दिला दूँगा। महाप्रभु जी ने कहा - हाँ हाँ! ये तो उससे भी अच्छा है लेकिन इसमें तो पाप नाश कहा है और जिसके पाप ही न हों कुछ, उसके लिये क्या है? तो कुछ सोचकर फिर बोले....... (क्रमश:)
 (शेष प्रवचन अगले भाग में)
 प्रवचनकर्ता -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
प्रवचन स्त्रोत- साधन-साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।

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