पौराणिक ग्रंथों में श्रीराधा रानी
राधा को अक्सर राधिका भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में विशेषकर वैष्णव सम्प्रदाय में प्रमुख देवी हैं। वह कृष्ण की प्रेमिका और संगी के रूप में चित्रित की जाती हैं। उनके ऊपर कई काव्य रचना की गई है और रास लीला उन्हीं की शक्ति और रूप का वर्णन करती है । वैष्णव सम्प्रदाय में राधा को भगवान कृष्ण की शक्ति स्वरूपा भी माना जाता है , जो स्त्री रूप मे प्रभु के लीलाओं मे प्रकट होती हैं। गोपाल सहस्रनाम के 19वें श्लोक में वर्णित है कि महादेव जी द्वारा जगत देवी पार्वती जी को बताया गया है कि एक ही शक्ति के दो रूप है राधा और माधव(श्रीकृष्ण) तथा ये रहस्य स्वयं श्री कृष्ण द्वारा राधा रानी को बताया गया है। अर्थात राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं। भारत के धार्मिक सम्प्रदाय निम्बार्क और चैतन्य महाप्रभु इनसे भी राधा को सम्मीलित किया गया है।
ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की सखी थीं। ब्रज में राधा का महत्व सर्वोपरि है। राधा के लिए विभिन्न उल्लेख मिलते हैं। राधा के पति का नाम ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार रायाण था अन्य नाम रापाण और अयनघोष भी मिलते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार कृष्ण की आराधिका का ही रूप राधा है। आराधिका शब्द में से अ हटा देने से राधिका बनता है। राधाजी का प्राकट्य यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था। यहां राधा का मंदिर भी है। राधारानी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। यहां की ल_मार होली सारी दुनिया में मशहूर है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में मुखिया वृषभानु गोप एवं कीर्ति की पुत्री के रूप में राधा रानी का प्राकट्य जन्म हुआ। राधा रानी के जन्म के बारे में यह कहा जाता है कि राधा जी माता के गर्भ से पैदा नहीं हुई थीं, लेकिन उनकी माता ने अपने गर्भ को धारण तो कर रखा था। उन्होंने योग माया कि प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहां स्वेच्छा से श्री राधा प्रकट हो गई। श्री राधा रानी जी निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतीर्ण हुई उस समय भाद्र पद का महीना था, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार का दिन था। इनके जन्म के साथ ही इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा।
राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली हैं। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दु:खी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती हंै तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती हंै। यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती हंै। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते हंै। तब राधा जी अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए पहली बार अपनी आंखें खोलती हंै। वे एक टक कृष्ण जी को देखती हैं, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते हंै।
माना जाता है कि राधा और कृष्ण का विवाह कराने में ब्रह्मा जी का बड़ा योगदान था। भगवान ब्रह्मा ने जब श्रीकृष्ण को सारी बातें याद दिलाईं तो उन्हें सब कुछ याद आ गया। इसके बाद ब्रह्मा जी ने अपने हाथों से शादी के लिए वेदी को सजाया। गर्ग संहिता के मुताबिक विवाह से पहले उन्होंने श्रीकृष्ण और राधा से सात मंत्र पढ़वाए। भांडीरवन में वेदीनुमा वही पेड़ है जिसके नीचे, जहां पर बैठकर राधा और कृष्ण ने शादी हुई थी। दोनों की शादी कराने के बाद भगवान ब्रह्मा अपने लोक को लौट गए। लेकिन इस वन में राधा और कृष्ण अपने प्रेम में डूब गए। गर्ग संहिता के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण ही इस जगत् के आधार हैं। भांडीरवन के पास ही एक वंशी वन है जहां भगवान कृष्ण अक्सर वंशी बजाने जाया करते थे। कहा जाता है कि हज़ारों साल पुराना वंशी वन आज भी मौजूद है साथ ही वो वृक्ष भी मौजूद है जिस पर कृष्ण भगवान बांसुरी बजाए करते थे। कहा तो इतना जाता है कि आज भी अगर उस वृक्ष में कान लगाकर सुनेंगे तो आपको बांसुरी और तबले की आवाज़ सुनाई देती है।
श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि श्री राधा जी की पूजा नहीं की जाए तो मनुष्य श्रीकृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता। राधा जी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं।
राधाजी का एक नाम कृष्णवल्लभा भी है क्योंकि वे श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली हैं। माता यशोदा ने एक बार राधाजी से उनके नाम की व्युत्पत्ति के विषय में पूछा। राधाजी ने उन्हें बताया कि रा तो महाविष्णु हैं और धा विश्व के प्राणियों और लोकों में मातृवाचक धाय हैं। अत: पूर्वकाल में श्री हरि ने उनका नाम राधा रखा। भगवान श्रीकृष्ण दो रूपों में प्रकट हैं—द्विभुज और चतुर्भुज। चतुर्भुज रूप में वे बैकुंठ में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और तुलसी के साथ वास करते हैं परन्तु द्विभुज रूप में वे गौलोक घाम में राधाजी के साथ वास करते हैं। राधा-कृष्ण का प्रेम इतना गहरा था कि एक को कष्ट होता तो उसकी पीड़ा दूसरे को अनुभव होती। सूर्योपराग के समय श्रीकृष्ण, रुक्मिणी आदि रानियां वृन्दावनवासी आदि सभी कुरुक्षेत्र में उपस्थित हुए। रुक्मिणी जी ने राधा जी का स्वागत सत्कार किया। जब रुक्मिणीजी श्रीकृष्ण के पैर दबा रही थीं तो उन्होंने देखा कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं। बहुत अनुनय-विनय के बाद श्रीकृष्ण ने बताया कि उनके चरण-कमल राधाजी के हृदय में विराजते हैं। रुक्मिणीजी ने राधा जी को पीने के लिए अधिक गर्म दूध दे दिया था जिसके कारण श्रीकृष्ण के पैरों में फफोले पड़ गए।
बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का विधान है।
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