ब्रेकिंग न्यूज़

  संसारियों की स्थिति, भूल और सुधार
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की दिव्य-वाणी से नि:सृत प्रवचन
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज हमारी स्थिति के विषय में समझा रहे हैं कि आखिरकार हम क्यों बारम्बार दु:खमय संसार की ओर ही आकृष्ट हो रहे हैं, इस स्थिति का सुधार कैसे होगा और क्या अनन्यता की परिभाषा और उसका स्वरुप है? एक-एक शब्द को गंभीरतापूर्वक विचार करते हुये पढऩे से ही वह हृदयंगम हो सकेगा, अत: इस हेतु बारम्बार पढऩे की भी अपेक्षा है। आइये उनकी दिव्य-वाणी से नि:सृत प्रवचन के इस अंश से कुछ लाभ पाने की चेष्टा करें -
 
(यहां से पढ़ें....)
 
...एक महापुरुष कहता है -

असुन्दर: सुन्दरशेखरो वा गुणैर्विहीनो गुणिनां वरो वा।
द्वेषी मयि स्याद् करुणाम्बुधिर्वा कृष्ण: स एवाद्य गतिर्ममायम।।
 
श्रीकृष्ण चाहे काले कुरुप हों, अरे ऐसे भी बनकर आ जाते हैं श्रीकृष्ण, धोखे में न रहना। ऐसे कुरुप बनकर आ जायें तुम्हारी बगल में बैठ जाएं कि तुम कहो कि ये कहां से आ गया, जंगली जानवर, बदबू आ रही है। उठकर वहां से चले जाओगे। अरे वो बड़े नाटक करने वाले हैं। हां! तो चाहे ऐसे बन कर आ जाओ और चाहे अनंतकोटि कन्दर्प दर्पदलन पटीयान बन कर आ जाओ। हम दोनों को स्वीकार करेंगे। चाहे करुणा के अवतार बन कर आ जाओ और चाहे दुश्मनी के अवतार बन कर आ जाओ। हे श्रीकृष्ण! तुम ही हमारे थे, हो, रहोगे, कान खोलकर सुन लो। हमारे प्रेम में परिवर्तन नहीं होगा, तुम्हारे व्यवहार को देखकर। ये अनन्यता है।
 ये हमने बार-बार आप लोगों को बताया है कि मांगों मत कुछ गुरु और भगवान से। वो तुम्हारे दास नहीं हैं, तुम उनके दास हो। मांगना तो स्वामी का काम है। आर्डर देता है स्वामी न। अरे संसारी सर्विस तो करते हैं आप लोग। बॉस ने आर्डर भेजा है, एक गवर्नमेन्ट का आर्डर आया है। नीचे वाला आर्डर नहीं भेजता प्राइम-मिनिस्टर को। तो तुम दास हो। तुम कहते हो हमारी ये इच्छा है। ऐ तुम्हारी इच्छा? तुम्हारी इच्छा तो गोबर गणेश की है।
 परीक्षित ने एक बार पूछा शुकदेव परमहंस से कि महाराज! ये लोग इतने जूते-चप्पल खाते हैं फिर भी संसार में ही मरते हैं, भगवान की ओर नहीं आते? उन्होंने कहा हाँ हाँ ठीक है, ठीक है। एक दिन जंगल में जा रहे थे, तो वहाँ देखा एक जगह सूखा लेट्रीन पड़ा था और उसमें चार-पाँच कीड़े उसका गोला बना रहे थे। शुकदेव ने कहा - ऐ, फूल रख दिया एक शुकदेव ने और कहा परीक्षित! वो जो कीड़े बेचारे पाखाने में, गन्दगी में पड़े हैं। उनको जरा लकड़ी से पकड़ करके इस फूल में रख दो। उन्होंने कहा कि क्या गुरुजी का आर्डर है गन्दा, मानना पड़ेगा। वो गये लकड़ी से पकड़ करके दो तीन कीड़े फूल में रख दिये। वो फिर रेंगते हुये वहीं पहुंच गये। उन्होंने कहा - देखा रे परीक्षित! उन्होंने कहा, हां देखा। तेरे प्रश्न का उत्तर हो गया न? ओ, हां महाराज! हो गया, समझ गये।
 
तो कामनायें कुछ नहीं करना भगवान से। वेद बार-बार कहता है -

यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामा ये-अस्य हृदि श्रिता:।
अथ  मत-र्योमृतो   भवत्यत्र  ब्रम्ह   समश्नुते।।
(शाट्यायनी उप. 27वाँ मंत्र, कठोपनिषद 2-3-14, बृहदारण्यक उप. 4-4-7)
 
अरे मनुष्यों! संसारी कामनायें छोड़ दो तो तुम ब्रम्ह के समान हो जाओ। कुछ और करना ही नहीं है। ये भक्ति-वक्ति का मतलब ही यही होता है, ये (संसार की) कामनायें छोड़कर वो (भगवान की) कामना करो। बस इसी का नाम भक्ति है। भक्ति माने भगवान की कामना।

(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
 
( स्त्रोत-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा  मैं कौन? मेरा कौन? विषय पर दिये गये ऐतिहासिक 103 प्रवचनों की श्रृंखला के 79 वें प्रवचन का एक अंश।)
(सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

Related Post

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Chhattisgarh Aaj

Chhattisgarh Aaj News

Today News

Today News Hindi

Latest News India

Today Breaking News Headlines News
the news in hindi
Latest News, Breaking News Today
breaking news in india today live, latest news today, india news, breaking news in india today in english