कौन थी देवी सती सुलोचना
रामायण के प्रमुख पात्रों में देवी सुलोचना का जिक्र भी आता है। सुलोचना वासुकी नाग की पुत्री थी, लेकिन उसका विवाह लंका के राजा रावण के पुत्र मेघनाद के साथ हुआ थी। रामायण में जिक्र है कि लक्ष्मण ने जब युद्ध में मेघनाद का वध कर दिया, तो उसके कटे हुए शीश को भगवान श्रीराम के शिविर में लाया गया था।
इन्द्रजीत (मेघनाद) रावण का महापराक्रमी पुत्र थी। जब लक्ष्मण उसका वध करने की प्रतिज्ञा लेकर युद्ध भूमि में जाने के लिये तत्पर हुए, तब राम ने कहा- लक्ष्मण, युद्ध भूमि में जाकर तुम अपनी वीरता और रणकौशल से रावण-पुत्र मेघनाद का वध तो दोगे, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। लेकिन एक बात का विशेष ध्यान रखना कि मेघनाद का मस्तक भूमि पर किसी भी प्रकार न गिरे। क्योंकि मेघनाद एकनारी-व्रत का पालक है और उसकी पत्नी परम पतिव्रता है। ऐसी साध्वी के पति का मस्तक अगर पृथ्वी पर गिर पड़ा तो हमारी सारी सेना का ध्वंस हो जाएगा और हमें युद्ध में विजय की आशा त्याग देनी पड़ेगी। लक्ष्मण अपनी सैना लेकर चल पड़े। समरभूमि में उन्होंने वैसा ही किया। अपने बाणों से उन्होंने मेघनाद का मस्तक उतार लिया, पर उसे पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया। हनुमान उस मस्तक को रघुनंदन के पास ले शिविर में ले आये।
इसी दौरान मेघनाद की दाहिनी भुजा आकाश में उड़ती हुई देवी सुलोचना के पास जाकर गिरी। सुलोचना चकित हो गयी। पर उसने भुजा को स्पर्श नहीं किया। उसने सोचा, सम्भव है यह भुजा किसी अन्य व्यक्ति की हो। ऐसी स्थिति में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष उस पर लग जाएगा। तब उसने भुजा से कहा- यदि तू मेरे स्वामी की भुजा है, तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध का सारा वृत्तांत लिख दे। दासी ने भुजा को लेखनी पकड़ा दी। भुजा ने लिखा- प्राणप्रिये, यह भुजा मेरी ही है। युद्ध भूमि में श्रीराम के भाई लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ। लक्ष्मण ने कई वर्षों से पत्नी, अन्न और निद्रा छोड़ रखी है। वे तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न है। संग्राम में उनके साथ मेरी एक नहीं चली। अन्त में उन्हीं के बाणों से मेरा प्राणान्त हो गया। मेरा शीश श्रीराम के पास है।
यह यह देखकर सुलोचना व्याकुल हो गयी और विलाप करने लगी। पुत्र-वधु के विलाप को सुनकर लंकापति रावण ने आकर कहा- शोक न कर पुत्री। प्रात: होते ही सहस्त्रों मस्तक मेरे बाणों से कट-कट कर पृथ्वी पर गिर जाऐंगे। मैं रक्त की नदियां बहा दूंगा। करुण चीत्कार करती हुई सुलोचना बोली- पर इससे मेरा क्या लाभ होगा, पिताजी। सहस्त्रों नहीं करोड़ों शीश भी मेरे स्वामी के शीश के आभाव की पूर्ती नहीं कर सकेंगे। सुलोचना ने सती होने का निश्चय किया, किंतु पति का शव तो युद्ध भूमि में पड़ा हुआ था। सुलोचना ने अपने ससुर रावण से राम के पास जाकर पति का शीश लाने की प्रार्थना की। किंतु रावण इसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसने सुलोचना से कहा कि वह स्वयं राम के पास जाकर मेघनाद का शीश ले आए। सुलोचना शत्रु के शिविर में जाने की बात से सहम गई थी, लेकिन उस वक्त रावण ने उसे समझाया कि राम पुरुषोत्तम हैं, इसीलिए उनके पास जाने में तुम्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं करना चाहिए। रावण ने उत्तर दिया- देवी ! जिस समाज में बालब्रह्मचारी हनुमान, परम जितेन्द्रिय लक्ष्मण तथा एकपत्नी व्रती भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में तुम्हें जाने से डरना नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।
सुलोचना ने वैसा ही किया। सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं चलकर सुलोचना के पास आये और बोले- देवी, तुम्हारे पति विश्व के महान योद्धा और पराक्रमी थे। उनमें बहुत-से सद्गुण थे; किंतु विधि की लिखी को कौन बदल सकता है। सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से प्रभु की ओर देखा और बोली- राघवेन्द्र, मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहां आई हूं। श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।
पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो गया। उसकी आंखें बड़े जोरों से बरसने लगीं। रोते-रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा- सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी गर्व मत करना की मेघनाथ का वध मैंने किया है। मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी। यह तो दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था। आपकी पत्नी भी पतिव्रता हैं और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ती रखने वाली उनकी अनन्य उपसिका हूं। पर मेरे पति देव पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और उन्हीं के लिए युद्ध में उतरे थे, इसी से मेरे जीवन धन परलोक सिधारे।
सुलोचना पति का सिर लेकर वापस लंका आ गई। लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी। पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर बैठी और धधकती हुई अग्नि में कुछ ही क्षणों में सती हो गई।
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