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    ईश्वरीय मार्ग में तेजी से आगे कैसे बढ़ा जाए?
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के सारगर्भित प्रवचन
 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज इस युग के वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य हैं। उन्होंने अपने अवतारकाल में अनेकानेक गुढ़ातिगूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों एवं शंकाओं का निराकरण किया है जिससे भगवदीय प्रेम-पथिकों के लिये साधना का मार्ग नित्य निरंतर प्रकाशवान रहा है। अनेक जिज्ञासु जीवों ने उनसे अपनी जिज्ञासायें व्यक्त की थी, जिनका उन्होंने बड़ा सरल एवं वेदादिक सम्मत समाधान प्रदान किया है। ऐसा ही एक प्रश्न एक साधक ने उनसे पूछा था। आइये उस प्रश्न तथा श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दिये गये उत्तर पर हम सभी विचार करें :::::
 
(यहाँ से पढ़ें....)
 
प्रश्न : ईश्वरीय मार्ग में तेजी से आगे कैसे बढ़ा   जाए?
 
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::::::
 
यह तो आपके प्रयत्न पर निर्भर करता है। कोई लड़की 24 घंटे में एक घंटे ही पढ़ी, 10/100 रिजल्ट आएगा। जितना श्रम करोगे उतना ही फल मिलेगा। चाहे ईश्वरीय राज्य हो अथवा मायिक राज्य हो। दोनों ही राज्यों में परिश्रम की लिमिट के अनुसार ही फल की लिमिट होती है। यदि हम चाहते हैं, कि हम जो कुछ कमा रहे हैं, उतना ही बना रहे तो भी हमें यह ध्यान रखना होगा कि माइनस करने वाली बातें न होने पाये।
 
अगर 24 घंटे में 12 घण्टे भगवत चिंतन किया और 12 घंटे माया का चिंतन किया तो दोनों का बैलेंस बराबर हो गया। आगे तो बढ़ नहीं पाये। यह हम मानते है, कि एटमॉस्फियर भी एक कारण है चिंतन का लेकिन सबसे बड़ा कारण यही है कि मन ने भगवान की उपासना को क्यों बन्द कर दिया। अगर तुमने टाइम भी दिया और जो तत्वज्ञान समझाया जा रहा है, उसके अनुसार आपने ईश्वरीय चिंतन के तत्वज्ञान को अपने साथ नहीं रखा तो गड़बड़ हो जाएगी और अगर ईश्वरीय चिंतन बना रहा तो और गड़बड़ भी बहुत कम असर कर पायेगी। लेकिन ज्यादातर होता यह है कि कमाई की, कुछ जमा हो पायी कि गँवाई शुरू हो गयी और सारी कमाई हवा हो गयी।
 
अन्त:करण एक ऐसी वस्तु है, जिस पर नये-नये संस्कार हावी होते रहते हैं। और पुराने संस्कार दब जाते है। अगर एक माह में आपने ईश्वरीय संस्कारों को कर लिया और उसके बाद संसार में जाकर लापरवाही की और ईश्वरीय चिंतन नहीं किया तो अन्त:करण पर संसार का मैल फिर जम जाएगा। यह जो राग-द्वेष का आप चिंतन करते हैं उसका अन्त:करण पर काई के समान मैल जम जाता है। जो कमाई आपने की थी वह दब गयी।
 
इस प्रकार से हमें अपने मन पर ही ध्यान देना है, इस मन के बहकावे में नहीं आना है।
 
(प्रवचनकर्ता - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

स्त्रोत - जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।  

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