जब इधर की छूटेगी, तब उधर की बनेगी
- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज विस्तृत प्रवचन श्रृंखला
भगवान के प्रिय पार्षद भक्ति के आचार्य देवर्षि नारद जी ने 84 सूत्रों का एक दर्शन दिया है, जिसे नारद-भक्ति-दर्शन अथवा नारद-भक्ति-सूत्र के नाम से जाना जाता है। यह दर्शन भक्ति-तत्व की बड़ी गूढ़ तथा सम्पूर्ण व्याख्या करता है, जिसमें 84 छोटे-छोटे सूत्र हैं। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने इस पर एक विस्तृत प्रवचन दिया है, जिसमें उन्होंने उन सूत्रों की बड़ी विशद विवेचना कर उसे और अधिक सरलतम रुप में जीवों के समक्ष रखा ताकि वे उसके द्वारा भक्तिमार्ग अथवा प्रेममार्ग पर अधिक सुगमता से एक आधार लेकर आगे बढ़ सकें। नीचे दिया प्रवचन अंश उसी प्रवचन श्रृंखला से लिया गया है, आगे भी इस प्रवचन-माला के कई अंश साधन-पथ के लाभार्थ प्रकाशित किये जायेंगे :::::::::
(जब इधर छूटेगी, तब उधर की बनेगी - यहाँ से पढ़ें..)
...अन्धकार और प्रकाश में जितना बड़ा विरोध है, इतना बड़ा विरोध है भक्ति और कामना में। ये भगवान शब्द का प्रयोग ही तब होगा जब संसार की कामनाओं को छोडऩे का आप निश्चय करेंगे। अन्यथा भगवान की आवश्यकता क्या? अगर संसार में सुख है - ये हमारा डिसीजन है तो संसार सम्बन्धी कामना करते जाओ, मरते जाओ उसी में। ये भगवान नाम की चीज कब आयेगी? जब संसार की कामनाओं से और बीमारी बढ़ती है, यह बात बुद्धि में बैठेगी तभी तो हम भगवान की बात मस्तिष्क में लायेंगे, भगवान् की बात समझने के लिये विद्वानों और महात्माओं के पास जायेंगे। क्यों जायेंगे? भगवान् की बात समझना है। क्यों? वो भगवान की भक्ति प्राप्त करना है। क्यों? संसार की कामना से थक गये, पेट भर गया, चप्पल खाते-खाते समझ में आ गया यानी वो अज्ञान जो 'मैं देह हूँ' ये था, ये जितना कम होगा और 'मैं आत्मा हूँ, श्रीकृष्ण का दास हूँ' - यह ज्ञान जितना परिपक्व होगा, उसी हिसाब से ही तो हम ईश्वर की ओर चलेंगे। तो मूल कारण है अज्ञान और अज्ञान का कारण कौन है? माया, और माया का कारण कौन है? हम भगवान से बहिर्मुख हैं, पीठ किये हैं।
(स्त्रोत- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नारद-भक्ति-दर्शन पर दिये गये प्रवचन से उद्धृत संक्षिप्त अंश
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।)
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