जब शरणागत गड़बड़ करे तो गुरु को दु:ख होता है
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नि:सृत प्रवचन
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जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज से साधकों द्वारा पूछे गये प्रश्नों में से यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। शायद यह प्रत्येक साधक अपने जीवन में अनुभव करता है। किंतु इसके उत्तर में कृपालु महाप्रभु जी यह संकेत दे रहे हैं कि साधक को अपने मन को खराब नहीं करना चाहिये और यह समझे रहना चाहिये कि संस्कारवश होकर ही लोग भक्तिविषयक चीजों के प्रति खींचते अथवा दूर रहते हैं। यह भी संकेत देते हैं कि शरणागत अनुयायी जब लापरवाह बन जाय तो गुरु को दु:ख होता है। इन बातों को हृदय में रखकर आइये उनके द्वारा प्रदत्त उत्तर पर हम चिंतन करें ::::::::
(जब शरणागत गड़बड़ करे तो गुरु को दु:ख होता है...)
साधक द्वारा पूछा गया प्रश्न - महाराज जी ! हम लोग लोगों को सिद्धांत समझाते हैं कि भगवान् की ओर चलो. अच्छे-अच्छे हमारे रिश्तेदार, हमारे दोस्त वो बात नही समझते और हम दु:खी हो जाते हैं। लेकिन महापुरुष पूरी लाइफ समझाता रहता है तो लोग कितने समझते हैं. तो क्या वो महापुरुष दु:खी होता है, उनको भी परेशानी होती है क्या?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दिया गया उत्तर - जैसी परेशानी मायाबद्ध को होती है, ऐसी परेशानी उनको नहीं होती। मायाबद्ध को तो ऐसा है कि उसने कुछ अपमानजनक बात जवाब में कह दिया बजाय मानने के और उल्टा भगवान् के खिलाफ ही बोल दिया कुछ तो दु:खी होता है गृहस्थी आदमी। फील करता है और द्वेष बुद्धि होने लगती है उसकी उसके प्रति। महापुरुष को ये सब कुछ नहीं। वो समझ लेता है कि संस्कार नहीं है इसके। ये यह नहीं समझ रहा है। हो सकता है भविष्य में समझे। वो उदासीन रहते हैं। उसका अपना जन (साधक) जो शरणागत हो रहा है फिफ्टी परसेंट शरणागत हो रहा है और वो गड़बड़ करता है तो दु:खी होते हैं। जैसे पड़ोसी का बेटा बीमार है तो पड़ोसी दु:खी नहीं होता। उसका अपना बेटा बीमार होता है तब दु:खी होता है।
(जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु महाप्रभु जी से साधकों के प्रश्नोत्तर पर आधारित, क्रद्गद्घ. प्रश्नोत्तरी पुस्तक, भाग 2, पृष्ठ 157, प्रश्न संख्या 50)
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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