संत-महापुरुष की निंदा भगवान के द्वारा भी अक्षम्य है!!
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की प्रवचन श्रृंखला
सारे शास्त्रों में अनेक स्थानों पर स्वयं भगवान ने ही यह उदघोषित किया है कि भक्त का स्थान भगवान से ऊंचा है, हमारे लिये भी और भगवान भी अपने से ऊंचा स्थान अपने भक्त को देते हैं। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज यहां एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त समझा रहे हैं कि भूलकर भी कभी संत एवं वास्तविक महापुरुष की निंदा नहीं करनी है, न मन से सोचनी है और न किसी से सुननी है। साधक समुदाय के लिये यह एक अति महत्वपूर्ण सावधानी है। आइये इस सावधानी पर उनके द्वारा कहे गये इन महत्वपूर्ण शब्दों पर विचार-मंथन करें ::::::
(यहाँ से पढ़ें...)
निदाम भगवत: श्रवणन तत्परस्य जनस्य वा
ततो नापैति य: सोपि यात्यध: सुकृताच्च्युत:..
(भागवत, स्कंध 10)
अर्थात् भगवान् एवं उनके भक्तों की निंदा कभी भूल कर भी न सुननी चाहिए, अन्यथा साधक का पतन हो जायगा, तथा उसकी सत्प्रवृत्तियाँ भी नष्ट हो जायेंगी। प्राय: अल्पज्ञ-साधक किसी महापुरुष की निंदा सुनने में बड़ा शौक रखता है। वह यह नहीं सोचता कि निंदा करने वाला निन्दनीय है या महापुरुष है। संत-निंदा सुनना नामापराध है। वास्तव में तो यह ही सब अपराध अनादिकाल से जीव को सर्वथा भगवान् के उन्मुख ही नहीं होने देते।
जिस प्रकार कोई पूरे वर्ष दूध, मलाई, रबड़ी आदि खाय एवं इसके पश्चात् ही एक दिन विष (जहर) खा ले तथा मर जाय। अतएव बड़ी ही सावधानीपूर्वक सतर्क होकर हरि, हरिजन-निंदा-श्रवण से बचना चाहिए।
विष्णुस्थाने कृतं पापं गुरुस्थाने प्रमुच्यते ।
गुरुस्थाने कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।
भगवान् के प्रति किया हुआ अपराध गुरु द्वारा क्षमा कर दिया जाता है किन्तु गुरु के प्रति किया हुआ अपराध भगवान् भी क्षमा नहीं कर सकते।
(जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज)
स्त्रोत -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के अधीन।
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