यह अभ्यास बिठाओ कि संसार में नहीं, भगवान में सुख है!!!
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की नि:सृत प्रवचन श्रृंखला
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वैराग्य और अनुराग विषय पर सारगर्भित प्रवचन, बार-बार पढ़कर तदनुसार अभ्यास करें, तो निश्चय ही लाभ होगा :::::::
(उनके द्वारा नि:सृत प्रवचन यहां से है....)
...भगवत्प्राप्ति के लिए कुछ नहीं करना है। वो जो कुछ नहीं करना है उसके लिए बहुत कुछ करना है। हम अनंत जनम से करते आये हैं, ये जो कर्ता-अभिमान (मैं करता हूँ) है, ये मिटाना है।
लेकिन अनादिकाल से हमारी आसक्ति संसार में जो हो चुकी है, उसको हटा दें बस काम बन जाय। जैसे मिट्टी का ढेला है, उसको हाथ में पकड़े हो छोड़ दो, वो अपने आप अपने अंशी के पास चले जायेगा। तो ये जीव भगवान का अंश है, इसको माया के साइड से हटा दो तो भगवान के साइड अपने आप चला जायेगा।
वैराग्य का मतलब संसार से राग और द्वेष होना। यही दो चीज हमारी संसार से हो चुकी है। राग तब होता है जब किसी वस्तु में सुख मानते हैं और द्वेष तब होता है जब किसी वस्तु से सुख नहीं मिलता।
जब तक ये राग द्वेष हैं, करोड़ों जगद्गुरु प्रवचन देते रहें कोई लाभ नहीं। हम सुन लेंगे कह देंगे बहुत बढिय़ा फिर संसार में राग द्वेष। यही साधना है। अब जब ये अभ्यास से बैठ जायेगा बुद्धि में कि संसार में ना सुख है ना दुख है, तब मन उदासीन (न्यूट्रल) हो जाएगा। ये हमको करना होगा अपने आप नहीं हो जायेगा। अब आपका मन भगवान गुरु में एक सेकंड में लगाने के लिए तैयार हो गया।
(प्रवचनकर्ता - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
स्त्रोत- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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