दृढ़ विश्वास न होने से साधक अपने ही गुरु के खिलाफ सोचने लगता है!!!
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा जिज्ञासु जनों के प्रश्नों का समाधान
(एक साधक तथा श्री कृपालु महाप्रभु जी के मध्य संवाद)
-- साधक का प्रश्न- हमारे मन में शंका क्यों उत्पन्न होती है? कभी कभी ऐसा क्यों होता है कि हम अपने गुरु के खिलाफ मन ही मन सोचने लगते हैं?
श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर -ऐसा इसीलिए है क्योंकि हमारा गुरु पर विश्वास दृढ नहीं है। हमारा दृढ़ विश्वास जब श्री हरि-गुरु पर हो जायगा तब कोई भी बाहरी परिस्थिति कितनी भी प्रतिकूल क्यों ना हो, हमारा अपने इष्ट और गुरु से अटूट प्रेम कभी कम ना होगा।
हमारा विश्वास चूँकि दृढ़ नहीं है इसलिये प्रतिकूल परिस्थिति पाकर, चार नास्तिक लोगों की बात सुनकर, निगेटिव लोगों की बात सुनकर के हमारा प्यार हरि-गुरु से कम हो जाता है।
-- साधक का पुन: प्रश्न - विश्वास दृढ़ क्यों नहीं है?
श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर - जब हीरे का महत्व पता चल जायगा और हमारा दृढ़ विश्वास हो जायगा कि हमें जो चीज मिली है, प्राप्त हुई है वह अनमोल हीरा है तो किसी भी परिस्थिति में उसका महत्व कम नहीं होगा, हमारी आसक्ति उसमें बढ़ती जाएगी। सब हमारे ऊपर निर्भर है और सब कमाल दृढ़ विश्वास का है।
-- साधक का पुन: प्रश्न- विश्वास दृढ करने का उपाय क्या है?
श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर ::: हमें अपने हरि-गुरु के महत्व को समझना होगा। वो क्या पर्सनालिटी हैं, ये तत्वज्ञान से जानना होगा। फिर तत्वज्ञान के चिंतन और सत्संग से उन्हें पहचानना होगा। ऐसा करते करते हमें अनुभव होगा कि वही हमारे अपने हैं और हमारा परम कल्याण केवल उन्हीं से संभव है। वही एकमात्र हमारे शाश्वत माता पिता हैं तो फिर किसी भी बाहरी विपरीत परिस्थिति में उनसे हमारा प्रेम कम नहीं होगा बल्कि प्रेम बढ़ता जायगा।
स्त्रोत- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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