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 भगवान और गुरु के प्रति हम आखिर क्यों शरणागत नहीं हो सके?
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा आध्यात्मिक प्रश्नों का समाधान
 
 साधक का प्रश्न -हरि गुरु के प्रति अब तक पूर्ण शरणागति क्यों नहीं हुई ? 
 
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर)
 
कभी कभी गुरु के खिलाफ सोचने लगते है। कभी शास्त्र वेद पर अश्रद्धा होने लगती है। कभी संसार मीठा लगने लगता है। अगर संसार मीठा लग रहा है तो वैराग्य नहीं और वैराग्य नहीं तो श्रद्धा नहीं। श्रद्धा का आधार है वैराग्य!
 
जब सेंट परसेंट और निरंतर; दो शब्दों पर ध्यान दीजिए। सेंट परसेंट और निरंतर ये डिसीजन बना रहे। संसार में सुख नहीं है, उसके लिए भागें ना। मम्मी का प्यार, पापा का प्यार, बेटी का प्यार, बेटा का प्यार, खाने का, रसना का रोग, ये खायें, ये खायें, ये पीयें, देखने का रोग, सूंघने का रोग, स्पर्श करने का रोग अगर है तो वैराग्य कम्प्लीट नहीं, तो श्रद्धा भी कम्प्लीट नहीं तो, श्रद्धा भी कम्प्लीट नहीं है। 
 
इस प्रकार चेक करो और जहां मिस्टेक समझ में आए उसको काटो। और अगर ऐसा सोचा कि जैसे चल रहा है चलने दो तो लक्ष्य की प्राप्ति कैसे होगी? एक दिन ये मानव देह छिन जाएगा, बिना बताए, धोखा देखे। सबसे बड़ा धोखेबाज काल है।
 
(प्रवचनकर्ता -जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

(सन्दर्भ -जगद्गुरु कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।)
  

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