हमारा मन कितना शुद्ध है, इसकी क्या पहिचान है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा जिज्ञासुओं के पूछे गये प्रश्नों का समाधान ::::::
साधक का प्रश्न: हमारा अंत:करण कितना शुद्ध है, ये हम कैसे जानें? कोई पहचान है क्या इसकी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::::::
...इसकी एक पहचान है। जिसका हृदय जितना अधिक शुद्ध होगा, उसका हृदय, उसका मन उतनी ही जल्दी भगवान और महापुरुष की ओर खिंच जायेगा।
भगवान और महापुरुष चुम्बक के समान हैं। चुम्बक पत्थर होता है, लोहे को खींच लेता है। तो एक चुम्बक पत्थर बीच में रख दो और चारों ओर सुइयां खड़ी कर दो लोहे की। तो जिस सुई में जितना अधिक शुद्धत्व होगा, वो उतनी जल्दी खिंचेगी और जिसमें जितनी गन्दगी होगी, मिलावट होगी, उतनी देर में खिंचेगी।
जितना अधिक पाप का हृदय होगा उतनी देर में वो खिंचेगा भगवान और महापुरुष के सामने। तो अंत:करण की शुद्धि का यही प्रमाण है कि शुद्ध वस्तु को पाकर खिंच जाय। जितनी जल्दी खिंच जाय, जितने परसेंट सरेंडर हो जाय, वो ही उसका प्रमाण है कि हमारा हृदय कितना शुद्ध है, कितना पापात्मा है, गन्दा है।
सन्दर्भ -जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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