उपवीत में कितने धागों का इस्तेमाल होता है
हिंदू धर्म में यज्ञोपवीत का अपना एक अलग महत्व है। यज्ञोपवीत को उपनयन संस्कार भी कहा जाता है। जिसमें उप का अर्थ होता है निकट और नयन का अर्थ होता है ले जाना। यज्ञोपवीत के दौरान ही उपवीत या जनेऊ धारण किया जाता है, जो तीन से छह धागों का होता है।
प्राचीन भारत में जब बालक आठ साल का हो जाता था तो अध्ययन और ज्ञानार्जन के लिए उसे पाठशाला या गुरू के पास ले जाने के समय किए गए संस्कार को यज्ञोपवीत कहा जाता। प्राचीन भारतीय परंपरा में जन्म के बाद नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह, मृत्यु आदि समय-समय पर भिन्न भिन्न संस्कारों का विधान बताया गया है। जीवन में नैतिक दायित्वों के सकुशल निर्वाह के लिए विद्यार्जन को बहुत अहम् माना गया है। यज्ञोपवीत संस्कार में बालक को ज्ञान की महत्ता और उसकी प्राप्ति के उपायों के लिए प्रेरणा देते हुए उसे यह दायित्व दिया जाता है कि जीवन को नैतिकता और सदाचार के साथ कैसे जिया जाए। इसमें उसे जो उपवीत या जनेऊ पहनाया जाता है उसमें तीन धागे होते हैं और एक गांठ होती है और तीनों धागे तीन अलग-अलग दायित्वों के प्रतीक होते हैं। एक ब्रह्मï ऋण का, दूसरा पितृ ऋण और तीसरा गुरु ऋण का प्रतीक होता है। इन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी माना गया है। इसकी गांठ आध्यात्मिकता की प्रतीक स्वरूप ब्रह्मï-ग्रंथि होती है और क्योंकि आम तौर पर जनेऊ पुरूष पहनते हैं। इसलिए विवाह के बाद अपनी पत्नी की ओर से पति को छह धागों वाले जनेऊ पहनने का प्रावधान है। दरअसल प्राचीन काल में महिलाएं भी जनेऊ धारण करती थीं। बाद में यह परंपरा किन्हीं कारणों से बंद हो गई।
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