विश्वशान्ति के संवाहक जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का विश्वशान्ति-सन्देश
- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की अवतारगाथा सम्बन्धी विशेष लेखों की श्रृंखला
- 'विश्व-शान्ति' के संवाहक जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज इस युग के परमाचार्य हैं, जिन्हें काशी विद्वत परिषत द्वारा 'निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य' की उपाधि से विभूषित किया गया है। श्री कृपालु जी महाराज ने अपने पूर्ववर्ती समस्त मूल जगदगुरुओं तथा संतों के मतों का समन्वय करते हुये अन्यान्य धर्मग्रंथों, धर्मानुयायियों को दिव्य प्रेम का सन्देश देकर सबको एक सूत्र में बाँधकर आपसी झगड़े समाप्त करके श्रीकृष्ण भक्ति रूपी एक सार्वभौमिक मार्ग का प्रतिपादन किया, जो सभी धर्मानुयायियों को मान्य है।
'विश्व-शान्ति' के लिये उनका महत्वपूर्ण सन्देश, उनके शब्दों में नीचे इस प्रकार है ::::
'..यदि विश्व के सभी मनुष्य श्रीकृष्ण भक्ति रूपी शस्त्र को स्वीकार कर लें तो समस्त देशों का, समस्त प्रान्तों का, समस्त नगरों का, समस्त परिवारों का झगड़ा ही समाप्त हो जाय। केवल यही मान लें कि सभी जीव, श्रीकृष्ण के पुत्र हैं।
अत: परस्पर भाई-भाई हैं। पुन: सभी जीवों के अंत:करण में श्रीकृष्ण बैठे हैं। यथा - ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्द्येशेर्जुन तिष्ठति। (गीता 18-61)। अतएव किसी के प्रति भी हेय बुद्धि, निन्दनीय है। वर्तमान विश्व में इस सिद्धान्त पर राजनीतिज्ञों का ध्यान नहीं जाता अतएव अन्य भौतिक उपायों से शान्ति के स्थान पर क्रान्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। केवल उपर्युक्त भावों के भरने से ही विश्व शान्ति सम्भव है।
कोई भी मजहब हो, कोई भी धर्म हो, सबका धर्मी बस एक ही है, जिसे हिन्दू धर्म में 'ब्रम्ह', 'परमात्मा', 'भगवान' आदि कहते हैं, इस्लाम में उसी को 'अल्लाह' कहते हैं, फारसी में उसी को 'खुदा' कहते हैं। पारसी लोग उसी को 'अहुरमज्द' कहते हैं। उसी एक भगवान के ये सब नाम हैं। 'लाओत्सी' धर्म वाले 'ताओ' कहते हैं, बौद्ध लोग 'शून्य' कहते हैं। जैन लोग 'निरंजन' कहते हैं, सिक्ख लोग 'सत श्री अकाल' कहते हैं और अंग्रेज लोग 'गॉड' कहते हैं। ये सब उसी एक के अपनी अपनी भाषाओं में नाम हैं...'
-- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
इस तरह से जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने समस्त विश्व को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया है। वस्तुत: उनके हृदय में किसी भी जाति-पाँति का बंधन नहीं है। मुसलमानों के खुदा, ईसाइयों के परमात्मा, सिक्खों के वाहेगुरु सभी एक रुप में समा गये हैं, ऐसा विभिन्न मतानुयायी जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के पास आकर अनुभव करते थे। वे सभी को यही उपदेश देते थे कि जाति तो शरीर की होती है, आत्मा की कोई जाति नहीं होती। हमने अपने आपको शरीर मान लिया यही हमारे दु:ख का कारण है और यही विश्व में सब झगड़ों का कारण है। अगर हम अपने आपको आत्मा मान लें तो शाश्वत शान्ति प्राप्त हो जाय, सारे झगड़े समाप्त हो जायें।
समस्त मूल जगदगुरुओं में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ऐसे पहले जगद्गुरु हुये हैं, जो श्रीराधाकृष्ण भक्ति के प्रचारार्थ विदेश गये तथा वहाँ श्रीराधाकृष्ण भक्ति तथा प्रेम का दिव्य सन्देश दिया।
ऐसे समन्वयवादी, विश्व-शांति के संवाहक, महानतम विभूति जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की महानता, कृपालुता, अपनत्व आदि को कोटिश: वन्दन, नमन तथा कृतज्ञ भरे हृदय से बारम्बार नमस्कार!!!
सन्दर्भ ::: 'जगदगुरुत्तम' - जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की अवतारगाथा संबंधी पुस्तक
सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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