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 वेदों में गायत्री माता का गौरव
"तस्मात् अज्ञान सर्व हुत: ऋचा सामानि अज्ञिरे ।।छन्दांसि जज्ञिरे तस्मात् यजुस्तस्समाद जायत ॥ (यजु: 31- 7)
-अर्थात् उस यज्ञ का रूप परम ब्रह्म परमात्मा द्वारा चारों वेद ऋक्, यज्, साम, अथर्व सृष्टि के आदि में प्रादुर्भूत हुए ।।
(1) ऋग्वेद- में ज्ञान की बातें हैं अत: इसे ज्ञान काण्ड कहते हैं ।। इसमें कुल 10 मण्डल हैं ।। 85 अनुवादक हैं ।। 10522 मंत्र हैं । इसके दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं- ऐतरेय और और कौषीतकी तथा इसकी 28 शाखाएँ हैं और इसका 'आयुर्वेद' उपवेद है । गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है। इस में कुल 62 सूक्त हैं जो इंद्रदेव और अग्निदेव को समर्पित हैं। इसकी रचना महर्षि विश्वामित्र ने की।
(2)यजुर्वेद- में यज्ञ सम्बन्धी विशेष बातें हैं अत: इसे कर्मकाण्ड प्रधान कहते हैं ।। इसमें कुल 40 अध्याय हैं ।। 1975 मंत्र हैं ।। इसमें 1230 गुङ्कार (वैदिक अनुस्वार चिन्ह) ,, इस प्रकार के हैं । इसकी 101 शाखाएं हैं और इसका धनुर्वेद उपवेद हैं ।। शतपथ इसका ब्राह्मण है ।। यजुर्वेद में गायत्री गुरुमंत्र अध्याय 3 मंत्र 35 अध्याय 22 मंत्र 9, अध्याय 30 मंत्र 2 तथा अध्याय 36 मंत्र 3 में व्याहृति सहित आया है । यह सब से अधिक  चार बार इसी में आया है ।
(3) सामवेद- सरस्वर ग्राम गेय (गानात्मक) होने से इसे 'उपासना काण्ड' कहते हैं ।। इसमें 1875 मंत्र हैं ।। इनके 8 ब्राह्मण ग्रन्थ हैं ।। इसकी 1000 शाखाएं हैं । इसका 'गान्धर्ववेद' उपवेद है ।। गायत्री गुरु मंत्र -सामवेद प्रपाठक 6 अ. 13 खं. 14 सूक्त 10 में आया है ।
(4) अथर्ववेद- में कला कौशल (शिल्प शास्त्र) और औषधादि मंत्र- तंत्र निर्माण की (सूक्ष्म आध्यात्मिक ज्ञान सम्बन्धी) विशेष बातें हैं ।। अत: इसे 'विज्ञान- काण्ड' भी कहते हैं ।। इसके कुल 20 काण्ड 111 अनुवादक 731 सूक्त तथा 5977 मंत्र हैं ।। इसका गोपथ ब्राह्मण हैं ।। इसकी 9 शाखाएँ हैं और इसका 'अथर्ववेद उपवेद है ।'अथर्व वेद में एक बार भी गायत्री का पाठ नहीं परन्तु फल द्युति आवश्यक है और वह किसी भी वेद में नहीं है।
 
स्तुता मया वरदा वेद माता प्रचोदयन्ताम पावमानी द्विजानाम आयु: प्राणं प्रजानां पशुं, कीर्ति, द्रविणं ब्रह्मवर्चेस।। मह्यम दत्वा ब्रजव ब्रह्म  लोकम (अथर्व 19-17)
 
इसमें गायत्री को 3 विशेषणों से विभूषित किया गया है। पहला वरदा, वर देने वाली अर्थ यत यत वृणीने तत तत ददालीनि वरदा- इस व्युत्पति के आधार पर शुभ कामनाओं की पूर्ति करने वाली परिलक्षित हैं। साधकों की इच्छाओं को पूर्ण करने के कारण इसे कल्पवृक्ष कहते हैं।
गायत्री माता को वेदमाता कहा जाता है।  चूंकि इस महाशक्ति के आवाहन से ही वेद-मंत्रों का अवतरण हुआ इसलिए इसे वेदमाता कहते हैं। इसलिए गायत्री मंत्र की दृष्टा महिर्षि विश्वामित्र का कहना है कि गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री की एक कला के समान ही हैं। 
वेद भगवान की घोषणा है कि गायत्री माता आशीर्वाद के रूप में अपने पुत्रों को आयु, प्राण, प्रज्ञा, पशु , कीर्ति,  द्रविणं,  ब्रह्म, वर्चस  प्रदान करती हैं। यही विश्व की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। इनकी प्राप्ति से अभाव, अशक्ति और अज्ञान के तीनों प्रकार के दुखों की निवृत्ति हो जाती है। 
 
 
 

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