काशी विश्वनाथ में चिता की राख से खेली जाती है होली
होली रंगों का त्यौहार है। भारत में दो दिन पहले से ही होली का खुमार शुरू हो जाता है और रंग पंचमी तक जारी रहता है। कहीं फूलों से , कहीं रंगों, गुलालों से होली खेली जाती है तो कहीं पत्थर से। हमारे देश में चिता की राख से भी होली खेली जाती है। रंगभरी एकादशी के दिन से बनारस के बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर के दरबार से होली की शुरुआत होती है।
श्रद्धालु रंग भरी एकादशी के मौके पर बाबा के दरबार में जमकर होली खेलते हैं। । दूसरे दिन काशी के महा श्मशान मणिकर्णिका घाट पर होली खेलने का कार्यक्रम होता है। इस दौरान भगवान भोलेनाथ के भक्त चिता की राख से होली खेलते हैं।
काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर में रंगों से नहीं बल्कि चिता की राख से होली खेलने की परंपरा बरसों पुरानी है। मान्यता है कि फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती, पुत्र गणेश के साथ काशी पधारते हैं। तब तीनों लोक के लोग उनके स्वागत सत्कार के लिए काशी पहुंचते हैं। नहीं आ पाते हैं, तो महादेव के सबसे प्रिय भूत-पिशाच, दृश्य- अदृश्य आत्माएं। इस खुशी में यहां रंगोत्सव मनाया जाता है। अगले दिन गंगा नदी के किनारे मणिकर्णिका घाट पर चिता की भस्म की होली खेली जाती है। बसंत पंचमी से बाबा विश्वनाथ के वैवाहिक कार्यक्रम का जो सिलसिला शुरू होता है, वह होली तक चलता है। बसंत पंचमी पर बाबा का तिलकोत्सव होता है और महाशिवरात्रि पर विवाह। रंगभरनी एकादशी पर गौरा की विदाई का कार्यक्रम होता है। इसके अगले दिन बाबा अपने अड़भंगी बारातियों के साथ महाश्मशान पर दिगंबर रूप में होली खेलते हैं। इसे मसाने की होली के नाम से जाना जाता है। इसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग बनारस पहुंचते हैं।
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