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   98 वर्ष पूर्व शरद-पूर्णिमा की पावन रात्रि में अवतरित हुये थे भक्तियोगरस के अवतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज का अवतरण-दिवस

समस्त पाठक-समुदाय सहित समस्त विश्व को परमाचार्य भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के अवतरण-दिवस की अनंत-अनंत शुभकामनायें, आइये आज उनके माहात्म्य के विषय में कुछ स्मरण करते हुये अपने मन की पावन भावनाओं को उनके श्रीचरणों में अर्पित करते हुये उनसे कृपा की याचना करें कि वे अपने ज्ञान, अपनेपन, प्रेम की छाया हम पर रखें, जिससे अज्ञान के अंधकार से निकलकर हम भगवत्प्रेम तथा रस के समुद्र में अवगाहन के अधिकारी बन सकें। आप सभी पाठकों के साथ उनके दिव्य सिद्धान्तों को साझा करते हुये आज यह श्री कृपालु महाप्रभु जी सम्बन्धी 100-वाँ शीर्षक भी है। हरि-गुरु इच्छा-पर्यन्त आप सबकी इसी तरह सेवा करने के संकल्प सहित आप सबके प्रति शुभेच्छा.......

...शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि..
जिनका पावन अवतरण-दिवस है!!

'शरद पूर्णिमा 7 7 जगदगुरुत्तम जयंती'

अलौकिक विभूति :::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज!!!

...1922 की शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि में उत्तर-प्रदेश में इलाहाबाद के निकट 'मनगढ़' नामक छोटे से ग्राम में माँ भगवती की गोद में प्राकट्य, वही रात्रि, जब श्रीराधारानी की अनुकंपा से श्रीकृष्ण ने अनंतानंत गोपियों को महारास का रस प्रदान किया था। यही 'मनगढ़' आज 'भक्तिधाम' के नाम से सुविख्यात है!

...बाल्यावस्था से अलौकिक गुणों से सम्पन्न, चित्रकूट के सती अनुसुइया आश्रम तथा शरभंग आश्रमों के बीहड़ जंगलों में परमहंस अवस्था में वास। निरंतर 'हा राधे!' 'हा कृष्ण' का क्रंदन एवं प्रेमोन्मत्त विचित्र अवस्था। चित्रकूट; जो आपके विद्यार्थी, साधक, सिद्ध अवस्था तीनों की साक्षी और 'जगदगुरुत्तम' बनने की भी आधार बनी।

...परमहंस अवस्था से सामान्यावस्था में आकर जीव-कल्याण के लिये 'श्रीराधाकृष्ण भक्ति' का प्रचार प्रारंभ किया और अपने भीतर छिपे ज्ञान के अगाध भंडार को प्रगट किया।

...1957 में 34 वर्ष की आयु में भारतवर्ष की 500 मूर्धन्य विद्वानों की सर्वमान्य सभा 'काशी विद्वत परिषत' द्वारा 'पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम' की उपाधि से विभूषित हुये। आदि जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य एवं माध्वाचार्य जी के बाद पंचम मौलिक जगद्गुरु हुये।

...श्रीराधाकृष्ण प्रेम के जो स्वयं ही मूर्तिमान स्वरुप हैं, दिव्य महाभावधारी; आपके विलक्षण प्रेमोन्मत्त स्वरुप जिन्हें स्वयं ही 'भक्तियोगरसावतार' सिद्ध करता है। श्री गौरांग महाप्रभु द्वारा प्रचारित संकीर्तन पद्धति का अपूर्व विस्तार करते हुये जिन्होंने समस्त प्रेमपिपासुओं को 'राधाकृष्ण' के मधुर नाम, धाम, गुण एवं लीला के संकीर्तनों एवं पदों के रस में सराबोर कर दिया।

...ज्ञान का ऐसा अगाध समुद्र जिसमें कोई जितना अवगाहन करे, पर थाह नहीं पा सकता। बिना खंडन के जिन्होंने समस्त शास्त्रों एवं अन्यान्य धर्मग्रंथों के सिद्धांतों का समन्वय कर दिया और अंधविश्वासों एवं कुरुतियों का उन्मूलन/सुधार किया। आप समस्त विद्वानों द्वारा 'निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य' के रुप में सुशोभित हुये। और आपके लिये संत-समाज ने कहा है 'न भूतो न भविष्यति!!'

...समस्त विश्व को जिसने श्रीराधाकृष्ण की सर्वोच्च माधुर्यमयी ब्रजरस अर्थात गोपीप्रेम का रस प्रदान किया, जिन्होंने उस रस की प्राप्ति का सरल, सुगम एवं अत्यंत व्यवहारिक सिद्धान्त दिया। समस्त साधनाओं के प्राण 'ध्यान' को जिन्होंने 'रुपध्यान' नाम देकर अधिक सुस्पष्ट किया। और अपने आचरणों से स्वयं भक्ति साधना का मार्गदर्शन किया। इस महादान में क्या जाति-पाति, क्या देश-धर्म, क्या छोटे-बड़े - सब ही भागी बने हैं।

...जिनके कोई गुरु नहीं, फिर भी स्वयं जगदगुरुत्तम हैं। जिन्होंने कभी कोई शिष्य नहीं बनाया परन्तु जिनके लाखों करोड़ों अनुयायी हैं। सुमधुर 'राधा' नाम को विश्वव्यापी बनाया और पहले ऐसे जगद्गुरु जो विदेशों में भक्ति के प्रचारार्थ गये।

...अपने शरणागत जीवों के सँग जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से सदैव सँग हैं और अबोध जानकर जो हमेशा सुधार की 'महान आशा' लिये अपराधों पर निरंतर क्षमादान देते रहे हैं। पल भर को जिनका विछोह कभी अनुभूत नहीं हुआ। आज भी उनकी शरण आने वालों को उनके नित्य सँग की अनुभूति सहज है।

...समस्त विश्व पर जिनका अनंत उपकार है। वृन्दावन का 'प्रेम मंदिर', बरसाना का 'कीर्ति मैया मंदिर' और भक्तिधाम मनगढ़ का 'भक्ति मंदिर'; इसके अलावा इन्हीं तीनों धामों में 'प्रेम भवन', 'भक्ति भवन' एवं 'रँगीली महल' के साधना हॉल जिनकी कीर्ति और उपकार का चिरयुगीन यशोगान करेंगे और अनंतानंत प्रेमपिपासु जीवों को भक्तिरस का पान कराते रहेंगे। उनके द्वारा रचित एवं प्रगटित ब्रजरस साहित्य एवं प्रवचन हृदयों में भगवत्प्रेम की सृष्टि करते रहेंगे।

........और अधिक क्या कहें? संत के उपकार कहने का सामथ्र्य किस वाणी में है? स्वयं भगवान तक तो असमर्थ हैं, फिर कोई जीव क्या गिनावे? सत्य तो यही है कि 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु' न केवल नाम से अपितु अपने रोम-रोम से 'कृपालु' रहे, हैं और रहेंगे! 

वही श्री गौरांग महाप्रभु, वही श्री कृपालु महाप्रभु!! यह भी कहना अतिश्योक्ति न होगी। कह सकते हैं;

...अद्यापिह सेइ लीला करे गौर राय,
.....कोन कोन भाग्यवान देखिवारे पाय..

'शरद-पूर्णिमा' (30 अक्टूबर) उनका अवतरण दिवस है। जिन्होंने भी उनकी शरण ग्रहण की है, वे अपने ऊपर उड़ेले गये उनके प्रेम, कृपा, अपनेपन, सान्निध्य और मार्गदर्शन के साक्षी हैं। फिर वे तो समस्त विश्व के गुरु हैं। समस्त विश्व इतना ही तो कर सकता है कि 'उनके द्वारा दिये गये सिद्धान्त को आत्मसात कर ले और उनकी बताई साधना द्वारा भगवत्प्रेम बढ़ाते हुये अंत:करण शुद्ध करके अपने प्राणाराध्य राधाकृष्ण के प्रेम और सेवा को पाकर धन्य हो जाय'....

....यही देने और दिलाने तो वे आये, हम वह प्राप्त कर लें, अथवा प्राप्त करने के लिये तैयार हो जायँ, व्याकुल हो जायँ तो उनको कितनी ही प्रसन्नता होगी!! आओ, शरद-पूर्णिमा पर क्रंदन करें, उनकी कृपाओं के लिये, उनके परिश्रम के लिये, उनके क्षमादान के लिये.. उनकी सेवा, सँग और मार्गदर्शन पाने के लिये। 

हे जगदगुरुत्तम!! अनंतानंत हृदयों में आप सदैव विराजमान हो। आपकी सन्निधि प्राप्त कर यह धरा अत्यन्त पावनी बन गई है. आपको कोटिश: प्रणाम!!!

000 शुभकामनाएं :::: जगद्गुरु कृपालु परिषत, छत्तीसगढ़ राज्य।

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