वास्तु के अनुसार शौचालय और स्नानागार एक साथ होने से होता है ये नुकसान....
आजकल छोटे- छोटे मकान बनने लगे हैं जिसमें शौचालय और स्नानघर एक साथ रखे जाते हैं। कमरे के साथ अटैच्ड लेटबॉथ की विदेशी स्टाइल भी अब भारतीय जीवन पद्धति का हिस्सा बन गई है। वास्तु शास्त्र की बात करें तो भवन में या भवन के अंागन में स्नानागार और शौचालय बनाते समय वास्तु का सबसे ज्यादा ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इसके बुरे प्रभाव के कारण भवन का वातावरण बिगड़ सकता है।
वास्तु के अनुसार स्नानागार में चंद्रमा का वास होता है और शौचालय में राहू का। इसलिए शौचालय और स्नानगृह एक साथ नहीं होना चाहिए। चंद्रमा और राहू का एक साथ होना चंद्रग्रहण है, जो गृह कलह का कारण बनता है।
वास्तु के अनुसार स्नानागार भवन की पूर्व दिशा में होना चाहिए। नहाते समय हमारा मुंह अगर पूर्व या उत्त्तर में हो तो लाभदायक माना जाता है। शौचालय भवन के नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण)कोण में अथवा नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा के मध्य में होना उत्तम माना जाता है। इसके अलावा शौचालय के लिए वायव्य कोण और दक्षिण दिशा के मध्य का स्थान भी उपयुक्त बताया गया है। पूर्व में उजालदान होने चाहिए। स्नानागार में वॉश बेसिन को उत्तर या पूर्वी दीवार में लगाना चाहिए। दर्पण को उत्तर या पूर्वी दीवार में लगाना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि दर्पण दरवाजे के ठीक सामने न हो। शौचालय की सीट इस प्रकार की हो कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या उत्तर की ओर हो। शौचालय की नकारात्मक ऊर्जा को घर में प्रवेश करने से रोकने के लिए हमेशा शौचालय और स्नानघर का दरवाजा बंद रखें और उपयोग करते समय ही खोलें। शौचालय का जब भी उपयोग करें , एक्जॉस्ट फेन अवश्य चला लें ताकि नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाए। सबसे बड़ी बात शौचालय और स्नानगृह को हमेशा साफ-सुधरा रखें । स्नानगृह को सूखा रखने का प्रयास करें इसलिए स्नान के बाद फर्श के पानी को निकाल दें।
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