अहंकार जिस पर बरसता है उसे तोड़ देता है, प्रेम जिस पर बरसता है उसे जोड़ देता है।
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 107
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वर्णित अहंकार और प्रेम में अंतर के कुछ बिन्दु ::::::
(1) जगत की ओर देखने वाला अहंकार से भरता है, प्रभु की ओर देखने वाला प्रेम से पूर्ण होता है।
(2) अहंकार सदा लेकर प्रसन्न होता है, प्रेम सदा देकर संतुष्ट होता है।
(3) अहंकार को अकड़ने का अभ्यास है, प्रेम सदा झुक कर रहता है।
(4) अहंकार जिस पर बरसता है उसे तोड़ देता है, प्रेम जिस पर बरसता है उसे जोड़ देता है।
(5) अहंकार दूसरों को ताप (दुःख) देता है, प्रेम मीठे जल सा तृप्ति देता है।
(6) अहंकार संग्रह में लगा रहता है, प्रेम बाँट बाँटकर बढ़ता है।
(7) अहंकार सबसे आगे रहना चाहता है, प्रेम सबके पीछे रहने में प्रसन्न है।
(8) अहंकार बहुत कुछ पाकर भी भिखारी है, प्रेम अकिंचन रहकर भी पूर्ण धनी है।
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश, जुलाई 1997 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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