घर का वास्तुदोष दूर करना है, तो रखें यह शंख
पांचजन्य शंख का भारतीय धर्मशास्त्रों में विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान श्रीकृष्ण इसी शंख को धारण करते हैं, जो बहुत चमत्कारिक था। इसमें 5 अंगुलियों की आकृति होती है। पांचजन्य शंख अब भी मिलते हैं लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं। इन्हेंं घर के वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।
मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से छठवां रत्न शंख था। अन्य 13 रत्नों की भांति शंख में भी वही अद्भुत गुण मौजूद थे। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। इसलिए यह भी मान्यता है कि जहां शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। इन्हीं कारणों से शंख की पूजा भक्तों को सभी सुख देने वाली है।
शंख को समुद्रज, कंबु, सुनाद, पावनध्वनि, कंबु, कंबोज, अब्ज, त्रिरेख, जलज, अर्णोभव, महानाद, मुखर, दीर्घनाद, बहुनाद, हरिप्रिय, सुरचर, जलोद्भव, विष्णुप्रिय, धवल, स्त्रीविभूषण, पाञ्चजन्य, अर्णवभव आदि नामों से भी जाना जाता है।
महाभारत में लगभग सभी योद्धाओं के पास शंख होते थे। उनमें से कुछ योद्धाओं के पास तो चमत्कारिक शंख होते थे, जैसे भगवान कृष्ण के पास पांचजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी। कहते हैं कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। इस शंख के हरियाणा के करनाल में होने के बारे में कहा जाता रहा है। माना जाता है कि यह करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में काछवा और बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम में रखा था, जहां से यह चोरी हो गया।
महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पांचजन्य शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे बल्कि इससे कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी। इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है।
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