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 जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी के द्वारा विरचित 'राधा गोविन्द गीत' ग्रन्थ में श्रीकृष्ण के गोचारण लीला की झाँकी
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 122

आज 'गोपाष्टमी' है। इस दिन विशेष रूप से श्री गौमाता जी की पूजा-अर्चना होती है। ब्रजरस-प्रेमियों की दृष्टि में आज ही के दिन नन्द-यशोदा के नन्दन श्रीकृष्ण प्रथम-बार गोचारण अर्थात गैया चराने गये थे। श्रीकृष्ण को गायें अत्यन्त प्रिय हैं। गायों के सेवक हैं श्रीकृष्ण, इसी से वे गोपाल कहलाये हैं। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपनी 11111-दोहों के ग्रन्थ 'राधा गोविन्द गीत' में श्रीकृष्ण की गोचारण लीला का बड़ा सरस वर्णन किया है। अपने अन्य ग्रंथों यथा 'प्रेम-रस-मदिरा' में भी गोचारण के पदों की रचना उन्होंने की है। प्रस्तुत भाव 'राधा गोविन्द गीत' की 'लीला-माधुरी' खण्ड के दोहे हैं। जो कि ब्रज-रस-माधुरी पुस्तक ग्रन्थ में भी वर्णित हैं। आइये इन दोहों का आधार लेकर मन से इस लीला में प्रवेश करें :::::::

(ब्रज रस माधुरी पुस्तक)
भाग - 1, पृष्ठ संख्या 295, 2010 संस्करण

ग्वाल बाल गोपाल गोविन्द राधे, गोपाष्टमी को गो पूजन करा दे।।
छोटो सो कन्हैया गोविन्द राधे, चल्यो है चरावन गैया बता दे।।
एक काँधे पै तो गोविन्द राधे, धरि ली कन्हैया ने कामरी बता दे।।
दूजे काँधे पै गोविन्द राधे, छोटी सी धरि ली लठिया बता दे।।
छोटी सी मुरली को गोविन्द राधे, कान्ह ने खोंस ली फेंट में बता दे।।
सिर पर मोरपंख गोविन्द राधे, कमर में पतरी करधनी बता दे।।
गल में वनमाल गोविन्द राधे, पग में नुपूर कनक बता दे।।
कटि पीताम्बर गोविन्द राधे, कछनी भी कछी मैया ने बता दे।।
संग में है भैया गोविन्द राधे, मनसुख आदि सखावृन्द बता दे।।
वंशीवट जाके गोविन्द राधे, बैठे तरु छाया में बता दे।।
गैया चरन लागी गोविन्द राधे,  हरी हरी घास बड़े चाव से बता दे।।
चारों ओर सखा सब गोविन्द राधे, बीच में बैठे कन्हैया बता दे।।
मुरली मधुर तान गोविन्द राधे, छेड़ी कान्ह ने तबहीं बता दे।।
गैयान कानन को गोविन्द राधे, दोना बनाय सुनै तान बता दे।।
छोटे बड़े सखा सब गोविन्द राधे, हास परिहास करें कान्ह सों बता दे।।
जहाँ बैठे घनश्याम गोविन्द राधे, तहाँ भई भीर गोपियों की बता दे।।
नभ में विमानन गोविन्द राधे, बैठी लखें देव अंगनायें बता दे।।
भैया ने कहा कन्हैया गोविन्द राधे, अब चलो घर भई साँझ बता दे।।

00 उपरोक्त भाव-दोहों का सरलार्थ ::::::

'गोपाष्टमी' ही वह पावन दिन है जिस दिन बालकृष्ण नन्दबाबा तथा माता यशोदा जी से आज्ञा लेकर प्रथम बार गोचारण को जाते हैं। इस दिन उन्होंने समस्त ब्रजवासियों के साथ गोमाता की पूजा-अर्चना की थी। उनके गोचारण लीला की एक मधुर झाँकी ऐसी है कि छोटे से गोपाल कृष्ण अगनित गायों को साथ लेकर गोचारण को जा रहे हैं। 

उन्होंने एक काँधे पर कामरी ओढ़ रखी है। और दूसरे काँधे पर उन्होंने छोटी सी लठिया (लाठी) धारण कर रखी है। छोटी सी मुरलिया को छोटे से कन्हैया ने अपनी फेंट में खोंस ली है। गोपालक गोपाल के सिर पर मोरपंख तथा कमर में पतली सी करधनी बँधी हुई है। गले में उन्होंने वनमाला धारण की हुई है तथा पैरों में सोने के नुपूर पहने हुये हैं। मैया यशोदा ने अपने लाला को पीताम्बर धारण कराया है तथा कछनी भी कसी हुई है।

ऐसे मनोहारी छवि वाले गोपाल कृष्ण के सँग भैया बलराम तथा धनसुख, मनसुख आदि अनगिनत सखाओं का समूह है। सभी वंशीवट पहुँचकर एक विशाल सघन वृक्ष की छाया में बैठ गये हैं, यह झाँकी ऐसी है कि समस्त सखावृन्द के मध्य में श्रीकृष्णचन्द्र विराजमान हैं। सभी गायें चारों ओर फैली हुई हरी-भरी घास चरने लगी हैं। कुछ देर बाद श्रीकृष्णचन्द्र अपनी मुरली की मधुर तान छेड़ देते हैं। इस मधुर तान को गैया बड़ी मगन होकर सुनने लगी हैं, ऐसा लग रहा है मानो मुरली के मधुर रस को वे अपने दोनों कानों को दोना बनाकर ग्रहण कर रही हैं।

वन की इस गोचारण लीला में सभी सखा अपने सखा कृष्ण के साथ निर्बाध हास-परिहास तथा क्रीड़ा आदि करते हैं। ब्रज की गोपियाँ इस सुन्दर शोभा को निहारने के लिये कन्हैया के चारों एकत्रित हो जाती हैं। इस लीला-माधुरी को आकाश में विचरती स्वर्गादिक देवांगनाएँ भी एकटक मुग्ध होकर निहारने लगती हैं। जैसे जैसे शाम ढलने लगती है, भैया बलदाऊ अपने भ्राता कृष्ण से कहते हैं कि लाला! चलो गैयाओं को लिवा लायें, अब साँझ ढलने लगी है। समस्त गैयाओं को साथ लेकर ब्रजराजकुमार नंदनन्दन गोपाल मीठी-मीठी बाँसुरी बजाते हुये, गैयाओं की पैरों से उठी धूल से धूसरित होकर गोकुल में प्रवेश करते हैं। समस्त ब्रजगोपियाँ, गोप, मैया आदि इस झाँकी पर बारम्बार 'बलिहार-बलिहार' कहते हुये बलिहार जाकर आनन्दित हो रहे हैं।

00 सन्दर्भ (केवल दोहे) ::: ब्रज-रस-माधुरी, भाग - 1 (2010 संस्करण)
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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