गौ माता में होता है देवी-देवताओं का वास, कथा से लें पुण्य लाभ
आज गोपाष्टमी पर विशेष
आज गोपाष्टमी मनाई जा रही है। आज के दिन गौ-माता की पूजा अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार में गाय में देवी-देवताओं का वास होता है। गाय की सेवा से पुण्यफल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन पूरे मन से गौ-माता की आराधना करने से जातकों की हर मनोकामना पूरी होती है। गोपाष्टमी पर पढ़ें गोपाष्टमी की व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान माता यशोदा से बोले - मैया अब हम बड़े हो गए हैं।
मैया यशोदा बोली - अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें?
भगवान ने कहा - अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे।
मैया ने कहा - ठीक है बाबा से पूछ लेना मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान नन्द बाबा से पूछने पहुंच गए
बाबा ने कहा - लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चराओ
भगवान ने कहा - बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा
जब भगवान नहीं माने तब बाबा बोले- ठीक है लाल तुम पंडित जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे
बाबा की बात सुनकर भगवान् झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले -पंडित जी, आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का मुहूर्त देखना है, आप आज ही का मुहूर्त बता देना मैं आपको बहुत सारा माखन दूंगा।
पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे तब नंद बाबा ने पूछा, पंडित जी के बात है? आप बार-बार क्या गिन रहे हैं? पंडित जी बोले, क्या बताएं नंदबाबा जी, केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है। पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान को गौ चारण की स्वीकृति दे दी।
भगवान जो समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहूर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी, भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।
माता यशोदा ने अपने लल्ला के श्रृंगार किया और जैसे ही पैरो में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैया यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो में कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो... और भगवान जब तक वृंदावन में रहे, भगवान ने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान की गौ-चारण लीला का आरंभ हुआ।
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