जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 126
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें ::::::
(1) दिव्य प्रेमास्पद का दिव्य प्रेम ही सर्वोत्कृष्ट तत्व है। प्रेम का तात्पर्य तत्सुख सुखित्वं अर्थात प्रेमास्पद के सुख में ही सुख मानना है।
(2) आँसू बहाओ तब अंतःकरण शुद्ध होगा। जब अंतःकरण शुद्ध होगा तब गुरु उस अंतःकरण को, इन्द्रियों को दिव्य बनायेगा। तब दिव्य भगवान का दर्शन आप इन आँखों से कर सकेंगे।
(3) ब्रम्हलोक पर्यन्त के सुखों की कामना एवं पाँचों मुक्तियों की कामनाओं का त्याग करके ही विशुद्धा भक्ति सरोवर में अवगाहन करो। अन्यथा प्रेम के उज्ज्वल स्वरूप पर कामनाओं का काला धब्बा लग जायेगा।
(4) गुरु को अपना इष्टदेव, अपनी आत्मा मानो। अर्थात आत्मा से भी आराध्य है गुरु, ऐसा मानकर जो उपासना करेगा, उसी को भगवत्प्राप्ति हो सकती है।
(5) अपने अशुद्ध मन को गुरु के निर्देशन में रहकर शुद्ध करना चाहिये। गुरु द्वारा बताई हुई साधना द्वारा अंतःकरण शुद्ध कर लेने पर ही जीव दिव्य भगवद्धाम में जाने का अधिकारी बनता है।
०० सन्दर्भ ::: जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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