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  राम और कृष्ण में भेदभाव मानना बहुत बड़ा अपराध है, न छोटे न बड़े, दोनों एक तत्व हैं
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 129

(राम कृष्ण में भेद नहीं है - विषय पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन का एक अंश)

...भगवान के अनन्त अवतारों में थोड़ा भी भेदभाव करने वाला नामापराधी है। सबसे बड़ा पापात्मा। इसलिये ये जब आप लोग वेद का मंत्र बोलते हैं कीर्तन करते हैं सब लोग, 'हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे', ये कलिसंतरिणोपनिषद का मंत्र है। तो राम के उपासक 'हरे राम' तो बोल देते हैं, 'हरे कृष्ण' नहीं बोलते और हरे कृष्ण वाले एक सम्प्रदाय है हमारे देश में तो वो ये 'हरे राम' ऊपर लिखा हुआ है वेद में तो उन्होंने 'हरे कृष्ण' को ऊपर कर दिया।

पहले 'हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे' फिर 'हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।' ऐसी मूर्खता आप लोग कभी न करेंगे। चाहे राम कहो; चाहे श्याम कहो; सब भगवान के नाम हैं और सब एक फल देने वाले हैं। भगवान में कोई छोटा बड़ा नहीं होता।

देखो हमारे संसार में एक आदमी है। वो किसी का पति है, किसी का बेटा है, किसी का भाई है, वो कभी ऑफिस में बैठता है बड़े अप टू डेट ढंग से सीरियस तो जब घर में आता है तो लुंगी पहनकर के अपना और ढंग से रहता है। तो क्या वो बदल गया। क्या स्त्री कहेगी कि तुम ऑफिस वाले तो ये नहीं हो। हाँ। कोई माँ ऐसा कहेगी?

तो भगवान के समस्त अवतारों की लीलायें अलग-अलग होती हैं। देश काल के अनुसार इसलिए उनकी लीलाओं में रस लेना चाहिये। हाँ आपको मर्यादा की लीला में रस नहीं मिलता, प्रेम लीला में रस लो। मर्यादा में रस मिलता है उसमें लो, दोनों में लो। हर अवतार का रस लो। भगवान के अवतारों में भेदभाव नहीं होना चाहिये। सब अवतार एक हैं। उनका नाम, उनका रूप, उनका गुण, उनकी लीला, उनके धाम, उनके जन ये सब एक हैं। इनमें कहीं भी मन का अटैचमेंट हो तो अनन्य ही रहेगा। अन्य नहीं हो जायेगा। माया के एरिया में गये बस अन्य हो गये। अब अनन्य नहीं रहे।

जो मायाबद्ध हैं देवता स्वर्ग के, मनुष्य जिन्होंने भगवत्प्राप्ति नहीं की, मायाबद्ध हैं। राक्षस मायाबद्ध हैं। यानी सात्विक राजस तामस, ये तीन लोग जो हैं ये माया के अण्डर में हैं। इनमें मन का अटैचमेंट नहीं होना चाहिये। ड्यूटी। अजी अपनी माँ से प्यार कर रहे हैं। कोई पाप है? हाँ पाप है। भगवान ने कहा है तुमसे केवल मुझसे प्यार करो। केवल, अनन्य। अनन्य का मतलब क्या? लक्ष्मण ने क्या कहा था;

गुरु पितु मातु न जानहु काहू।
मोरे सबहि एक तुम स्वामी।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव।

भगवान ही हमारी असली माँ है। ये संसार की माँ संसार के पिता तो हर जन्म में बदलते रहते हैं। कितने पिता हो चुके हम लोगों के, गिनती है? कुत्ते भी पिता बने, गधे भी पिता बने, हर योनि में हम लोग गये। अनन्त पिता बन चुके, अनन्त माँ, अनन्त बीवी, अनन्त पति, अनन्त बेटा-बेटी। कहाँ हैं वो? सब बदलते रहते हैं लेकिन भगवान जो हमारा माता पिता है वो सदा एक था, एक है, एक रहेगा। इसलिये भगवान राम-कृष्ण में भेदभाव न करके जिसमें भी मन का झुकाव हो उसमें प्यार करो वो बात अलग है लेकिन दो न मानो। भेद न मानो, बुद्धि को समझा दो। ये बहुत बड़ा अपराध है।

(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

00 सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, जुलाई 2015 अंक
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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