जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों से निःसृत पंच सार/5-सार बातें (भाग - 3)
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 132
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 3) ::::::
(1) तीन महाबल होते हैं। भक्त की चरण धूलि, भक्त के चरण का धोवन और भक्त का खाया हुआ उच्छिष्ट जूठन। ये तीन में महाबल होता है, श्रीकृष्ण प्रेम पैदा करने की शक्ति होती है। इसलिये इन तीनों का सेवन करना चाहिये।
(2) भगवान सर्वव्यापक हैं, सर्वज्ञ हैं, सर्वान्तर्यामी हैं, महाचेतन हैं। इसलिये हम कहीं भी भगवान की भावना कर लें भगवान का फल मिल जायेगा। यहाँ तक कि मन की बनाई हुई मूर्ति से भी अनन्त जीवों ने भगवत्प्राप्ति कर ली और मैं भी आप लोगों को मन से बनाई हुई मूर्ति की ही साधना बताता हूँ।
(3) भगवान का रूपध्यान अगर सौ बार बनाया और एक बार बना, बहुत है। हिम्मत करो आगे। दूसरी बार जब सौ बार करोगे तो दो बार होगा, फिर तीन बार होगा, फिर होने लगेगा। पहले करना, फिर होना। पहले प्रैक्टिस फिर हैबिट, नैचुरेलिटी।
(4) प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है श्रीकृष्ण भक्ति। श्रीकृष्ण को धारण करने के लिये श्रीकृष्ण भक्ति की रस्सी पकड़ो। वह भक्ति की रस्सी श्रीकृष्ण के हाथ में है। उसी रस्सी को पकड़ लो, वे खींच लेंगे। ऐसे ही जम्प करके ऊपर जाने की चेष्टा न करो। गिरोगे, सिर फट जायेगा।
(5) भगवान के अवतार के अनन्त कारण हैं किन्तु सबसे मुख्य कारण जीवों पर करुणावश कृपा करना है। भगवान का सगुण साकार अवतार जब होता है, वे अपना नाम, रूप, लीला, गुण, धाम यहाँ छोड़ जाते हैं, जिनका अवलम्ब लेकर अनंतानंत जीव उनके प्रेमानन्द को प्राप्त करते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य एवं अध्यात्म सन्देश पत्रिका
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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