शरीर से संसार का कार्य करो, लेकिन मन का प्रेम, लगाव केवल भगवान को अर्पित किये रहो
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 133
(संसारी काम करते हुये किस प्रकार मन से ईश्वरीय साधना का लाभ मिल जाय, इस संबंध में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन...)
...काम दो प्रकार का होता है, एक बौद्धिक; जिसमें आप दिमाग से विचार करते हैं और दूसरा शारीरिक। आप एक साधारण काम कर रहे हैं, जैसे साइकिल चला रहे हैं। आगे पीछे का भी ध्यान है। आगे कौन जा रहा है, उससे बचाना है। पीछे से कार आ रही है, उससे बचना है।
यद्यपि मन के बिना कोई कार्य नहीं होता। वह आपकी आँख के पास भी है, कान के पास भी है, हाथ पैर से आप साइकिल चला रहे हैं, उनके पास भी है। डॉक्टर से दवा लाना है उधर भी ध्यान है। लेकिन अपने बेटे की दवा लाना है, उसमें आपका अटैचमेन्ट है। वह आपका मेन लक्ष्य है। यह अटैचमेन्ट की सीट आप भगवान को दे दीजिये, बाकी संसार का सब काम कीजिये।
आपके संसारी सम्बन्धी भला यह कैसे जानेंगे कि अमुक काम तुमने क्या सोचकर किया है। उनका काम भगवान का काम सोचकर करो। वह काम भी अधिक अच्छा होगा। संसारी भी खुश रहेंगे और आपका वह सारा कार्य आपकी साधना हो जायेगी। आपके मन का लगाव संसार न होकर श्यामसुन्दर में हो जायेगा। सब काम प्रभु का समझकर करो। हानि में भी परीक्षा और लाभ में भी परीक्षा समझो। अपने को तृण से भी दीन समझो और अपमान में झल्लाओ नहीं, उसको आभूषण समझो।
जब दिमागी काम करना है उसको करने से पूर्व भगवान को याद कर लो। काम खूब मन लगाकर करो। पश्चात फिर उसे (भगवान) याद कर लो। श्यामसुन्दर को अपने पास बैठाये रहो और कार्य करते रहो। कोई आपका दुश्मन भी आ रहा है, रिवाल्वर लेकर। सोचो, मैं आत्मा हूँ, यह मेरा क्या बिगाड़ लेगा। शरीर से अलग होने पर प्रियतम (भगवान) के पास पहुँच जाऊँगा। डरो मत। सोचो कि यह सब प्रभु की लीला हो रही है। परीक्षा के लिये प्रति क्षण तैयार रहो। एक दिन जब यह नैचुरल हो जायेगा तो उसे (भगवान) निकालना चाहोगे तो भी मन से उसे निकाल न पाओगे।
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
00 सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, मार्च 2003 अंक
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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