जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी विरचित 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का चौथा भाग, दोहा संख्या 16 से 20
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 138
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 3 के दोहा संख्या 15 से आगे)
समदर्शिनी बनि रहें उर श्यामा।
जो जैसा करे वैसा फल पाये बामा।।16।।
अर्थ ::: सभी के हृदय में समदर्शिनी बनकर श्रीराधा निवास करती हैं। अपने अपने कर्मानुसार जीव सुख-दुःख प्राप्त करता है।
पूर्व जन्म कर्म नाहिं जाने कोउ बामा।
जाने और बिना कहे फल देवें श्यामा।।17।।
अर्थ ::: पूर्व जन्मों के कर्मों को कोई भी नहीं जानता। श्रीराधा जानती हैं एवं बिना कहे ही फल प्रदान करती हैं।
जो मन बुद्धि दै के भजे आठु यामा।
वाकी सँभार करें शिशु जनु श्यामा।।18।।
अर्थ ::: जो जीव मन-बुद्धि का समर्पण कर निरंतर श्रीराधा का स्मरण करता है उसका योगक्षेम वह उसी प्रकार वहन करती है जिस प्रकार नवजात शिशु की देखभाल माँ करती है।
भक्तों का योगक्षेम वहन करें श्यामा।
पतितों का पाप लिखें बैठि उर धामा।।19।।
अर्थ ::: स्वामिनी श्रीराधा भक्तों के हृदय में बैठकर उनका योगक्षेम (जो प्राप्त है उसकी रक्षा एवं अप्राप्त को देना) वहन करती हैं किंतु पापियों के हृदय में बैठकर उनके पाप-कर्मों का हिसाब लिखती हैं।
सब तजि जोइ भज श्याम अरु श्यामा।
श्यामा श्याम भी भजें वाको आठु यामा।।20।।
अर्थ ::: जो समस्त आश्रयों का त्यागकर अनन्य भाव से एकमात्र श्यामा-श्याम का ही आश्रय ग्रहण कर उनका निरंतर स्मरण करता है, श्यामा श्याम भी निरंतर उसका स्मरण करते हैं।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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