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 श्रीमद्भगवद्गीता की ये बातें हैं खास....
कुरुक्षेत्र की (युद्ध/धूर्त)पृष्ठभूमि में 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया जो श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह कौरवों व पांडवों के बीच युद्ध महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है- तं धर्मं भगवता यथोपदिष्ट वेदव्यास: सर्वज्ञोभगवान् गीताख्यै: सप्तभि: श्लोकशतैरु पनिबन्ध। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।  गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित हैं। इसलिए भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है।  इस ग्रंथ में जीवन का पूरा सर दिया गया है। साथी ग्रंथ में जीवन की हर परेशानी का समाधान बेहद शांतिपूर्ण और समाज ढंग से समझाया गया है । आज हम आपको भगवत गीता के 18 अध्याय के कुछ  बातें बताएंगे जो कि बेहद अहम हैं।
 गीता की 15 खास बातों
1 - श्रीमद भगवत गीता महाभारत में छंदों का सबसे महत्वपूर्ण संग्रह माना जाता है।
 2- विश्व भर में हिंदू भगवत गीता से परिचित और इसे पढ़े सभी लोगों ने इसे हर पीढ़ी के लिए बेहद महान बताया है। साथ ही इस के हर पड़ाव को जिंदगी के हर उतार-चढ़ाव से भी जोड़ा है।
 
3 - गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा युद्ध और जीवन के अर्थ को समझाने के लिए अर्जुन को दिए गए उपदेशों की श्रृंखला पर आधारित है।
 
4 - महाभारत इस बात की पुष्टि करता है कि भगवान श्री कृष्ण ने 3137 ईसवी पूर्व कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। विशेष जोशी संदर्भ के मुताबिक 35 साल की लड़ाई के बाद वर्ष 3102 ईस वी पूर्व के कलयुग में इसकी शुरुआत हुई थी।
 
5 - श्रीमद्भगवद्गीता पांडव राजकुमार अर्जुन और उसके सारथी बने श्री कृष्ण के बीच का एक महाकाव्य संवाद है।
 
6 - भगवत गीता में कुल 18 अध्याय हैं, जिनमें 700 छंद है। तीन हिस्सों में विभाजित है, जिसमें प्रत्येक हिस्से में 66 अध्याय को लिखा गया है।
 7 - नंबर 18 महाभारत में कई जगह प्रयोग होता है। दरअसल नंबर 18 का मतलब संस्कृत में जया होता है, जिसका शाब्दिक अर्थ बलिदान से है। भारतीय संस्कृति में इसका बेहद महत्व है। 18 त्यौहार, गीता में 18 अध्याय अक्षौहिणी अर्थात अ_ारह जरासंघ का 18 बार आक्रमण और कहा जाता है कि पांडवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी और कौरवों के पास 7 अक्षौहिणी सेना था तो कुल मिलाकर 18 हुए। इस प्रकार गीता के 18 अध्यायों में 18 अंक का भारतीय संस्कृति में बेहद गहरा महत्व हैं।
 
8 - श्रीमद भगवत गीता के श्लोक में मनुष्य जीवन की हर समस्या का हल छिपा है। गीता के 18 अध्याय और 700 गीता श्लोक में कर्म, धर्म, कर्मफल, जन्म, मृत्यु, सत्य, असत्य आदि जीवन से जुड़े प्रश्नों के उत्तर मौजूद हैं। 
 
9 -सम्पूर्ण गीता शास्त्र का निचोड़ है बुद्धि को हमेशा सूक्ष्म करते हुए महाबुद्धि आत्मा में लगाये रक्खो तथा संसार के कर्म अपने स्वभाव के अनुसार सरल रूप से करते रहो। स्वभावगत कर्म करना सरल है और दूसरे के स्वभावगत कर्म को अपनाकर चलना कठिन है क्योंकि प्रत्येक जीव भिन्न भिन्न प्रकृति को लेकर जन्मा है, जीव जिस प्रकृति को लेकर संसार में आया है उसमें सरलता से उसका निर्वाह हो जाता है। श्री भगवान ने सम्पूर्ण गीता शास्त्र में बार-बार आत्मरत, आत्म स्थित होने के लिए कहा है।  
 
10 - यह बात बेहद गौर करने वाली है कि भगवत गीता का सार बेहद कम लोगों को पता होता है। दरअसल कृष्ण वाणी अनुसार धर्म की सभी कस्मों को त्याग कर मुझे और सिर्फ मुझे-अपने आप को आत्मा समर्पित करते है। बहुत कम लोग इस निष्कर्ष को समझ पाते हैं। इसलिए तथ्य बहुत से कम लोगों को ही पता होता है।
 
11 - दरअसल भगवत गीता को गीता क्यों कहा गया है इसके पीछे भी एक उपदेश जुड़ा है। क्योंकि यह एक ऐसे स्केल पर बोला गया जिससे ्रअनुस्कल्प कहा जाता है। यानी प्रत्येक छंद में 32 अक्षर है। मूलत यह चार-चार पंक्तियों में विभाजित है, जिसमें 8 अक्षर है एक विशेष छंद त्रिशत्प स्केल का प्रयोग किया गया है, जिसमें हर प्रकार से हर 4 पंक्तियों में 11-11 अक्षर है।
 
12 - सिर्फ अर्जुन ने ही नहीं बल्कि युद्ध से जुड़े और तीन ने सीधे कृष्ण वाणी में गीता के उपदेश सुने थे। इनमें संजय, हनुमान और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक का नाम भी शामिल है।
 
 13 - भगवत गीता मूल्य तय शास्त्रीय संस्कृत में लिखा गया है। परंतु इसे अब तक 175 भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है।
 
14 -   गीता में योग की दो परिभाषाएं पाई जाती हैं। एक निवृत्ति मार्ग की दृष्टि से जिसमें 'समत्वं योग उच्यतेÓ कहा गया है अर्थात् गुणों के वैषम्य में साम्यभाव रखना ही योग है। सांख्य की स्थिति यही है। योग की दूसरी परिभाषा है 'योग: कर्मसु कौशलमÓ अर्थात् कर्मों में लगे रहने पर भी ऐसे उपाय से कर्म करना कि वह बंधन का कारण न हो और कर्म करनेवाला उसी असंग या निर्लेप स्थिति में अपने को रख सके जो ज्ञानमार्गियों को मिलती है। इसी युक्ति का नाम बुद्धियोग है और यही गीता के योग का सार है।
 15 - गीता के असल मायने में मानसिक शांति, सौभाग्य, मौत से डरना बेकार है, मौत का असल मायने में अर्थ, आत्मा का भौतिक संसार से आध्यात्मिक संसार में जाना, कर्म, भगवान और सत्य के बीच जुड़ाव, साथ ही एक प्राणी का दूसरी प्राणी के प्रति भावनाओं का जुड़ाव इन सब के बारे में जानकारी दी गई है।
 

 

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