जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों से निःसृत साधना-स्मरण सम्बन्धी 5-सार बातें (भाग - 4)
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 139
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचनों से निःसृत साधना-स्मरण सम्बन्धी 5-सार बातें (भाग - 4) :::::
(1) सत्य पदार्थ हरि एवं हरिजन ही हैं, अतएव केवल हरि, हरिजन का मन बुद्धि युक्त सर्वभाव से संग करना ही सत्संग है।
(2) जिस किसी भी संग के द्वारा हमारा भगवद्विषय में मन-बुद्धियुक्त लगाव हो वही सत्संग है। इसके अतिरिक्त समस्त विषय कुसंग है।
(3) जीव तो सदा ही अपने को अच्छा समझता है। वह भले ही पराकाष्ठा का मूर्ख क्यों न हो, उसे यह कथन बिलकुल ही प्रिय नहीं है कि तुम मूर्ख हो।
(4) अच्छा कर्म भी पाप है, बुरा कर्म भी पाप है, केवल भगवान और महापुरुष का चिन्तन बस ये ही सही है, बाकी सब पाप है क्योंकि बाँधने वाले हैं वो, उन कर्मों का बंधन होता है। अच्छा कर्म करोगे, स्वर्ग मिलेगा। खराब कर्म करोगे, नरक मिलेगा। अच्छा-बुरा कम्बाइन्ड मिक्सचर करोगे, मृत्युलोक मिलेगा। तीनों का परिणाम माया का, बन्धनकारक, 84-लाख में घुमायेगा वो।
(5) भक्तों के लिये भक्त और भगवान की पदरज, उनका चरणामृत और उनके मुख के उच्छिष्ट का बहुत अधिक महत्व है। इन तीनों का लगातार सेवन करने से अन्तःकरण शुद्ध होता है और एक दिन श्रीकृष्ण में स्वाभाविक प्रेम हो जाता है। ये अमूल्य रस गुरु की विशेष कृपा से ही मिलता है।
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
Leave A Comment