अनन्त बार मानव-जन्म पाकर भी हमारी किस लापरवाही ने सारा बनाव बिगाड़ दिया है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 141
(किस कर्म में उधार करें, किस कर्म को तत्काल करें, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से...)
..दो प्रकार का कर्म होता है क्योंकि आपके पास दो चीजें हैं; एक शरीर, एक आत्मा। तो आत्मा के कर्म के लिये उधार न करो, शरीर के कर्म को भले ही उधार कर दो और हम लोग उल्टा करते हैं। शरीर के कर्म को पहले करते हैं और अगर टाइम मिला, बचा फालतू वाला तो उसको परमार्थ में लगाते हैं। इसी प्रकार तन, मन, धन तीनों का संसार में उपयोग तो तुरन्त करते हैं और भगवान के एरिया में उपयोग करने में कतराते हैं, उधार कर देते हैं और उधार ही चलता जाता है।
अनन्त जन्म क्यों बीते? अनन्त बार भगवान को हमने देखा है, अनन्त संत हमको मिले हैं, उन्होंने समझाया है और हमने समझा भी है, लेकिन शरणागति में उधार कर दिया, भक्ति में उधार कर दिया, कल करेंगे और कल आने के पहले ही चल दिये। यमराज तो अपना बहीखाता लिये बैठा है ताक में, आपका समय हो गया, बस चलिये। अरे, मैं हट्टा-कट्टा हूँ, अभी जवान हूँ। अरे, जवान-ववान कुछ नहीं। टाइम, टाइम, मैं काल हूँ। काल के अनुसार काम करता हूँ। जाना पड़ेगा। अरे, मैं राजा हूँ, प्राइम मिनिस्टर हूँ, गवर्नर हूँ। अरे, तुम चाहे इन्द्र हो, सबको जाना पड़ेगा। काल के आगे किसी की दाल नहीं गलती। सबको उसकी बात माननी पड़ती है, सीधे नहीं तो टेढ़े। एक सेकण्ड का समय दे दो, काम महाराज! साइन कर दूँ प्रॉपर्टी का। न न एक बटे सौ सेकण्ड नहीं। इट इज ऐज़ श्योर ऐज़ डेथ। बस, उसी क्षण जाना पड़ेगा।
इसलिये उधार बन्द करो। परमार्थ का काम तुरन्त करो, साधना तुरन्त करो। एक क्षण का भरोसा नहीं। अगर ये फार्मूला याद रखो तो लापरवाही न होगी। हम लोग लापरवाही करते हैं न। हमारे पास आधा घण्टे का समय है। अब क्या करें? आधा घण्टा है, अब बीबी बैठी है, उसी से गप्पे हो रही हैं। आधा घण्टे का समय कैसे कटे? निरर्थक बातें हो रही हैं, वो ऐसा है, वो ऐसी है, वो ऐसा है, कुछ तुमको मिलना-जुलना है इन बातों से। नहीं जी, मिलना-जुलना तो नहीं है लेकिन फालतू बैठे थे तो एन्जॉयमेंट हो रहा है। ये एन्जॉयमेंट है? यानी हम लोग समय को बरबाद करने पर तुले हैं। किसी प्रकार ये मानव देह का अमूल्य समय समाप्त हो।
हम बोलते भी हैं, अरे बेटा! हम तो अस्सी वर्ष के हो गये, पिचासी के हो गये, हमारी तो बीत गई, तुम अपनी सोचो। क्या बीत गई? अरे, मतलब हम जाने वाले हैं। कहाँ जाओगे, गोलोक? अपने कर्म की सोचो। तुमने ऐसा कौन सा साधन किया है जो बड़े रुआब में कह रहे हो, हमारी तो बीत गई। बीत गई नहीं, हमने तो बरबाद कर दिया मानव देह को, ऐसे बोलो। अपना सर्वनाश कर लिया।
'आतमहन गति जाय'। आत्म-हत्यारा है वो जिसने भगवत्प्राप्ति नहीं किया, मरने के पहले। अरे, अगर भगवत्प्राप्ति नहीं किया तो कुछ कमी रह गई, तो भी डरो मत, अगले जन्म में पूरा कर लेना। लेकिन करो तो। उधार नहीं।
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
00 सन्दर्भ ::: 'हरि गुरु स्मरण' पुस्तक
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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