जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी विरचित 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का पाँचवाँ भाग, दोहा संख्या 21 से 25
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 142
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 4 के दोहा संख्या 20 से आगे)
मायाधीन जीव है अनादि कह बामा।
माया ते मुक्ति दिलावें श्याम श्यामा।।21।।
अर्थ ::: जीव अनादि-काल से मायाधीन है। श्यामा श्याम की कृपा से ही जीव को इस अनादिकालीन माया के बंधन से छुटकारा प्राप्त होता है।
ब्रम्ह की ही शक्ति जीव, माया कह बामा।
सब हैं सनातन माया, जीव, श्यामा।।22।।
अर्थ ::: जीव ब्रम्ह की शक्ति है। माया भी ईश्वरीय शक्ति है। माया, जीव एवं ब्रम्ह स्वरूपा श्रीराधा तीनों ही सदा से थे, सदा हैं, सदा रहेंगे।
माया है मिथ्या ऐसा बको आठु यामा।
किन्तु माया जाय जब कृपा करें श्यामा।।23।।
अर्थ ::: ज्ञान-मार्ग के अनुयायी कहते हैं केवल ब्रम्ह ही सत्य है, माया मिथ्या है। 'ब्रम्ह सत्यं जगन्मिथ्या'। परन्तु ज्ञानियों का यह कथन उनका भ्रम है। माया को मिथ्या कहने मात्र से माया से पीछा नहीं छूट सकता। श्री राधा-कृपाकटाक्ष के बिना करोड़ों उपाय भी इस माया से मुक्ति दिलाने में असमर्थ है।
साधना किये न मिलें श्याम पूर्णकामा।
पिया जिसे चाहे सोइ सुहागिनि बामा।।24।।
अर्थ ::: साधना करने मात्र से पूर्णकाम श्यामसुन्दर की प्राप्ति असम्भव है। प्रियतम स्वयं रीझकर जिसे स्वीकार कर लें वही सुहागिन स्त्री है। 'यमेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तनुगं-स्वाम्।'
तुम भी चित हम भी चित कह ब्रजबामा।
तुम विभुचित हम अणुचित श्यामा।।25।।
अर्थ ::: हे श्रीराधे! तुम भी चित् स्वरूप हो और तुम्हारा अंश होने के कारण हम भी चित् हैं किन्तु अन्तर इतना ही है कि तुममें अनन्त मात्रा की चित् शक्ति है, हममें अणु मात्र की चित् शक्ति है। (अर्थात किशोरी जी का ज्ञान अनन्त है, उनके अंश स्वरूप जीव में अल्प ज्ञान है।)
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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