जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 5) :::::
:जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 143
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 5) ::::::
(1) संसार में सबको एक ही वस्तु में सुख नहीं मिलता, जो व्यक्ति जिस व्यक्ति या वस्तु में बार-बार सुख की भावना बनाता है, उसी में आसक्ति हो जाती है। फिर उसी की ही कामना उत्पन्न होती है, फिर उसी कामनापूर्ति में क्षणिक सुख मिलता है।
(2) जब आत्मा दिव्य नित्य तत्व है, तो उसका विषय भी दिव्य ही होगा। संसार आत्मा का विषय हो ही नहीं सकता। वस्तुतः प्रत्येक अंश अपने अंशी को ही चाहता है। अतः आत्मा भी जगत में व्याप्त परमात्मा का ही नित्य दिव्य सुख चाहता है।
(3) सर्वोत्तम भक्त वही है जो संसार में रहकर, संसार के विषयों का सेवन करते हुये भी मन को कृष्ण में रखे। न तो कहीं द्वेष करे, न राग करे। संसार को अपने प्रभु का खेल माने, तथा संसार में सर्वत्र अपने शरण्य को ही देखे। यही कर्मयोग है।
(4) अपने स्वरूप को, जीवन के मर्म को जानना होगा। एतदर्थ दीनता ही प्रथम सोपान है। इसके अवलम्ब के बिना यह मन उस प्रभु को धारण कर ही नहीं सकता, असम्भव है। यही तो आधार है, इसके बिना तो पात्र, बर्तन ही नहीं बनेगा।
(5) प्रत्येक जीव जो जीवित रहता है, वह इसलिये कि वह समझता है कि कुछ चीजों में मैं सबसे आगे हूँ। अगर प्रत्येक बात में कोई सबसे अच्छा हो जाय तो उसका खुशी से हार्ट फेल हो जायेगा बशर्ते कि वह भगवान या महापुरुष न हो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश पत्रिका
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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