साधना-मार्ग में निराशा आने से हानि तथा उससे बचने के उपाय क्या हैं?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 145
(आध्यात्मिक जगत के साथ ही भौतिक जगत के मनुष्यों के लिये भी लाभदायक मार्गदर्शन, यहाँ से पढ़ें..)
..निराशा आने का मतलब ये कि उसने (साधक) सारी भगवत्कृपाओं पर लात मार दिया। जितनी भगवत्कृपा उसके ऊपर हुई, महापुरुष कृपा हुई, उसका बार-बार चिन्तन नहीं किया। निराशा आते ही बुद्धि को फटकारना चाहिए, फिर तुमने अपराध किया, क्या कृपा बाकी है जो तुम्हारे ऊपर नहीं हुई।
प्रतिकूल चिन्तन की धारा चलने न पावे, चिन्तन शुरू होते ही तुरन्त समाप्त करो। जैसे किसी स्त्री के कपड़े में आग लग गई, खाना बनाते समय, वह वहीं दबा देती है उसको। अगर वो लापरवाही करे तो सब कुछ जल जायेगा। अतः हम खाली समय का सदुपयोग नहीं करते, गलत चिन्तन करते हैं। इससे निराशा आती है।
इसका सबसे बढ़िया इलाज ये ही है, मन को खाली न रहने दो। जहाँ जाओ, भगवत चिन्तन में लग जाओ। 'आनुकूलस्य संकल्पः'। याद रखो शरणागति में अनुकूल चिन्तन ही हो, इसी की प्रैक्टिस करो, कुछ और न सुनो, न कुछ और पढ़ो, न कुछ और सोचो और अगर कुछ पढ़ने, कुछ सुनने, कुछ सोचने में आवे, तुरन्त होशियार हो जाओ। तत्काल होशियार हो जाओ, जैसे कोई खाना चबाता है, कंकड़ आया और दाँत से दबाकर आँख को मींचकर कहता है, अरे! कंकड़ आ गया। फेंक दिया उसको। और चबाये ही जाय उसको तो लोग पागल कहेंगे। अरे! कंकड़ आया, दाँत के नीचे कट से हुआ और स्वाद खराब हुआ फिर भी तुम खाये जा रहे हो। बाल आया तुम्हारे खाने के साथ, तुम्हारी समझ में आ गया और फिर भी चबाये जा रहे हो, तो लोग उसको पागल कहेंगे।
तो उसी प्रकार कोई गड़बड़ आये, खोपड़ी में तुरन्त निकालो। जब ये ज्ञान है कि निराशा हानिकारक चीज है और वो आने लगी, होशियार क्यों नहीं हो गये, धिक्कारा क्यों नहीं, अपने आपको। तुरन्त सही चिन्तन शुरू क्यों नहीं किया? जब जानते हो कि चिन्तन में अनन्त शक्ति है, राक्षस बना दे, महापुरुष बना दे। सारा काम चिन्तन का है और कुछ है ही नहीं विश्व में। अधिक चिन्तन जिस चीज का करोगे वैसे ही बन जाओगे। अच्छाई का चिन्तन करो, अच्छे बन जाओगे। बुराई का चिन्तन कुछ दिन करो, कितना भी अच्छा हो, बुरे बन जाओगे।
चिन्तन की लिंक के अनुसार उत्थान-पतन दोनों संभव है। इसलिए मन को खाली नहीं रखो, गलत संग में नहीं डालो। गलत व्यक्तियों से बात न सुनो, न करो और कहीं कान में पड़ जाय तो उसको ऐसे फेंक दो जैसे कंकड़ को खाना खाते समय फेंक देते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2014 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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