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 महापुरुषों के चरणों में प्रणाम करने का महत्व और उसका फल क्या होता है?
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 148

(क्या है संत-चरणों में शीश झुकाने का तात्पर्य, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु की वाणी में इस प्रकार है...)

अगर तुम एक बार भी संत के चरणों में प्रणाम कर लो तो फिर कुछ करना न रहे, उसके आगे बात खतम, भगवत्प्राप्ति हो गई, माया-निवृत्ति हो गई, सब काम खतम। अगर तुम समझ लो कि ये चरण क्या हैं? इन चरणों की धूलि भगवान चाहता है;

अनुब्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यंघ्रिरेणुभिः।
(भागवत 11-14-16)

भगवान पीछे-पीछे चलता है भक्तों के कि उनकी चरण धूलि मेरे ऊपर पड़े और मैं पवित्र हो जाऊँ, उन चरणों पर आज मुझ अभागे का मस्तक पड़ रहा है। अनन्त पाप किये हुये एक नगण्य जीव का, कितना बड़ा सौभाग्य है हमारा। तो उन चरणों पर अगर सिर को झुका दें, छू लें उन चरणों को फिर वो होश में रहेगा नहीं। उसने समझा ही नहीं उन चरणों का महत्व क्या है? हाँ, ठीक है, सब छू रहे हैं तो अपन भी पटक दो। वन परसेन्ट, टू परसेन्ट, टेन परसेन्ट कुछ भावना होगी आप लोगों की लेकिन प्रणाम माने सेन्ट परसेन्ट भावना, बुद्धि का सरेंडर, बुद्धि को दे देना गुरु के चरणों में, इसी का नाम शरणागति है। यही वास्तविक प्रणाम है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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